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रविवार, जुलाई 25, 2010

मरीजों को नहीं दिए सहमति पत्र

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के कायदों का जमकर उल्लंघन

पूरे देश में मरीजों को सुरक्षित रखने के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने अक्टूबर 2006 में जो मापदंड जारी किए थे, उनका इंदौर के डॉक्टरों ने जमकर उल्लंघन किया है। मरीजों को जो जानकारी दी जाना चाहिए, वह दिए बगैर ही दवा और टीकों का प्रयोग शुरू कर दिया गया। इसमें कई रोगियों की जान पर भी बन आई।

आईसीएमआर की 120 पेज की पुस्तक में जो कायदे बनाए हैं, उनकी जानकारी ही कई डॉक्टरों को नहीं है। ट्रायल करने वाले एक डॉक्टर ने बताया हमें तो बस हेलेंस्की घोषणा और स्पांसर कंपनी द्वारा बताए गए नियमों का पालन करते हैं। एक अन्य का कहना है ट्रायल एक बार क्लिनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री इंडिया में रजिस्टर्ड होने के बाद कोई कुछ पूछता ही नहीं है, इसलिए गाइडलाइन पढऩे की आवश्यकता नहीं है। ताज्जुब की बात तो यह है कि इस गाइडलाइन के बारे में अब तक एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्तव को भी जानकारी नहीं थी। उन्होंने बताया मामला उठा है तो गाइडलाइन निकलवाकर अध्ययन कर रहा हूं। अब इसके आधार पर तुलना की जाएगी।


जो किया जाना था, परंतु किया नहीं

- सहमति पत्र की एक कॉपी मरीज को देना।
- मरीज का बीमा करके पॉलिसी उसे देना।
- दवा के साइड इफेक्ट का पूरा खुलासा करना।
- मरीज के अनपढ़ होने पर दो शिक्षित गवाहों के हस्ताक्षर।
- थर्ड पार्टी एग्रीमेंट की गारंटी अर्थात ट्रायल एमवायएच में होने की स्थिति में अधीक्षक का पत्र
- जिस बात पर मरीज सवाल पूछे, उसे सहमति पत्र में अंडर लाइन करने लिखना।
- कोई लिखित सहमित न दे, तो ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग करना।
- मानसिक रोगियों के परिजन से कानूनी अनुमति के बगैर जांच नहीं करना। 



प्लेसिबो ट्रायल अनैतिक
आईसीएमआर ने स्पष्ट किया है कि मरीज को उपचार के बीच में ऐसी दवा देना जिसमें दवा के बजाए ग्लूकोज या स्टार्च हो (प्लेसिबो) अनैतिक कार्य है। इस संबंध में विश्व प्रसिद्ध हेलेंस्की डिक्लेरेशन को भी केंद्र सरकार ने मानने से इंकार कर दिया है।





ट्रायल इंदौर में, ईसी पूणे में
- ड्रग ट्रायल के गोखधंधे में निमयों को रखा ताक पर 



विदेशी कंपनी द्वारा मरीजों पर दवा आजमाइश के खेल ड्रग ट्रायल में भारत सरकार के नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाने का मामला सामने आया है। डॉक्टरों ने निजी कंपनियों से रुपए लेने की जल्दबाजी में यह भी नहीं देखा कि उन्हें जांचने वाली एथिकल कमेटी कहां की है। ट्रायल के ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसमें डॉक्टर इंदौर के हैं और कमेटी पूणे, बैंग्लूर, चैन्नई की। कमेटी के सामने हाजिर की जरूरत इन डॉक्टरों ने नहीं समझी।

मानसिक रोगियों पर किए गए ट्रायल में ऐसा ही किया गया। एमवायएच के उप अधीक्षक डॉ. वीएस पाल ने पूणे में कंपनी द्वारा गठित की गई एथिकल कमेटी से अनुमति ली। इसके लिए वे कभी पूणे गए भी नहीं। यही हाल एमवायएच अधीक्षक डॉ. सलिल भार्गव का भी रहा। उन्होंने ज्ञानपुष्प रिसर्च सेंटर पर दमा रोगियों पर जो ट्रायल की हैं, उनके लिए इंदौर के बाहर की एथिकल कमेटी से अनुमति ली।

कॉलेज के कर्मचारी भी चपेट में
मेडिकल कॉलेज के कुछ कर्मचारियों पर डॉक्टरों द्वारा ट्रायल करने की जानकारी मिली है। कॉलेज के एकाउंट सेक्शन में कार्यरत एक व्यक्ति पर चेस्ट सेंटर में ट्रायल की गई। वह दमे का रोगी है।




विधानसभा बहस के लिए ध्यानाकर्षण

 ड्रग ट्रायल पर बहस के लिए दो विधायकों ने गुरुवार को विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी से मुलाकात की है। विधायकों का कहना है कि इस मुद्दे पर अतिरिक्त समय दिया जाना चाहिए क्योंकि यह हर प्रदेशवासी से जुड़ा मुद्दा है। इंदौर एक के विधायक सुदर्शन गुप्ता ने बताया रतलाम के विधायक पारस सकलेचा के साथ मैंने इस मसले पर चर्चा करवाने की आग्रह किया है। विधानसभा अध्यक्ष सैद्धांतिक तौर पर इसके लिए राजी भी हो गए हैं।

विशेषाधिकार हनन की तैयारी
ड्रग ट्रायल में लिप्त कुछ डॉक्टर सरकार को झूठी जानकारी देकर या किसी प्रकार के लेख छपवाकर विधानसभा एवं नागरिकों को भ्रमित करने की कोशिश में लगे हैं। एक जागरूक विधायक ने 'पत्रिकाÓ को बताया जब कोई प्रश्न किसी सदस्य ने पूछा है तो उस पर सदन के पटल पर चर्चा होने तक किसी प्रकार का प्रभाव नहीं डाला जा सकता है। विषय से जुड़ा कोई व्यक्ति ऐसा करता है तब तो यह सीधे-सीधे विशेषाधिकार हनन का मामला है। ड्रग ट्रायल में भी ऐसी कोशिशें हो रही हैं, जिन्हें कामयाब नहीं होने दिया जाएगा।



News in Patrika on 23th July 2010

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