विदेशाी कंपनियों से तीन वर्ष में पूरे देश में फैलाया देशभर में नेटवर्क
बरसों से हिंदुस्तानियों पर विदेशी कंपनियां ड्रग ट्रायल के नाम पर 'गुमनामÓ दवाइयों का प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन इन कंपनियों से आने वाले धन का न तो केंद्र सरकार के पास और न ही राज्य सरकार के पास कोई हिसाब है। एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान में भारत में 1500 करोड़ का कारोबार जारी है, जो 2012 तक बढ़कर 2760 करोड़ तक पहुंचेगा। ताज्जुब तो यह है कि देशभर में ट्रायल करने वाले डॉक्टरों की कभी पड़ताल भी नहीं की गई, जबकि ये देश के गरीब और अनपढ़ मरीजों को अपना निशाना बनाते हैं।
विदेशी कंपनियों ने तीन वर्ष में पूरे देश में नेटवर्क फैलाया है। केंद्र सरकार में उपलब्ध आंकड़े बताते हैं देश में चारों चरणों (फेज वन से फोर) तक के ट्रायल चलते हैं। फेज वन और टू के ट्रायल जानलेवा हैं और इससे मरीज की जान भी जा सकती है। वर्ष 2009 में ही फेज वन की 33 और फेज टू की 53 ट्रायल हुई हैं। सबसे अधिक कारोबार महाराष्टï्र में हो रहा है। कर्नाटक और आंध्रप्रदेश दूसरे-तीसरे स्थान पर हैं। शहरों में बैंग्लूर सबसे आगे है। पूणे और मुंबई इसके बाद आते हैं।
मप्र में इंदौर, राजस्थान में जयपुर गढ़
विदेशी कंपनियों ने मप्र में इंदौर और राजस्थान में जयपुर को गढ़ बनाया है। वर्ष 2006 से 2009 तक इंदौर में क्रमश: तीन, दो, 13 और 38 ट्रायल हुए हैं, जबकि जयपुर में तीन, 11, 36 और 70 ट्रायल हुए हैं।
मौतें भी हुई
ट्रायल जानलेवा होती हैं, लेकिन इसकी आधिकारिक जानकारी किसी के पास नहीं है। जन स्वास्थ्य अभियान जैसे कुछ संगठनों ने अपने स्त्रोतों से जो जानकारी जुटाई है, वह बेहद चौंकाने वाली है। इसके मुताबिक 2007 में 132, 2008 में 229 और 2009 में 308 लोग ट्रायल का शिकार हुए हैं।
सुविधा से बना ली एथिकल कमेटी
ड्रग एंड कॉस्मेटिक अधिनियम के मुताबिक दवा प्रयोग के लिए एथिकल कमेटी से अनुमति लेना अनिवार्य होता है, लेकिन इन कमेटियों पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। सरकारी क्षेत्र में कमेटियों में वे ही लोग सदस्य हैं जो ट्रायल कर रहे हैं, जबकि निजी क्षेत्र में कमेटी के सदस्यों के नाम ही जगजाहिर नहीं किए गए हैं।
कोई जानकारी नहीं
ड्रग ट्रायल के बारे में हमारे विभाग के पास कोई जानकारी नहीं है। न तो हमें ट्रायल की जानकारी है और न ही इससे प्रभावित होने वाले मरीजों की। मामले में कितनी राशि आती-जाती है, इसके बारे में भी कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
- राकेश श्रीवास्तव, ड्रग कंट्रोलर, मध्यप्रदेश
बस रजिस्ट्रेशन करते हैं
ट्रायल के लिए रजिस्ट्रेशन करना हमारा काम होता है। इसके बाद हम निगरानी नहीं करते हैं। ट्रायल के लिए एथिकल कमेटियां सर्वाधिक जिम्मेदार हैं। कितना रूपया आता है, इसकी हमारे विभाग के पास कोई जानकारी नहीं होती।
- डॉ. आभा अग्रवाल, डिप्टी डायरेक्टर, क्लिनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री इंडिया
News in Patrika on 18th July 2010
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