विदेशी कंपनी की दवा को बाजार में उतारने से पहले उसे रोगियों पर आजमाने की विद्या 'ड्रग ट्रायलÓ का जाल बेहद चतुराई से फैलाया जाता है। रोगी को मुफ्त दवाई के लालच से फांसा जाता है और कहा जाता है कि उसे एक प्रोजेक्ट में हिस्सेदार बनाया जा रहा है। प्रोजेक्ट के कुछ कागजों पर उससे साइन लिए जाते हैं और शुरू हो जाती है ड्रग ट्रायल।
शहर के कुछ प्रबुद्ध डॉक्टरों ने 'पत्रिकाÓ को बताया जब कोई जरूरतमंद मरीज अस्पताल में आता है तो उसे कहा जाता है कि डब्ल्यूएचओ भारत के गरीब मरीजों की मदद करता है और उसी से जुड़ा एक कार्यक्रम अस्पताल में चल रहा है। इस कार्यक्रम में आपको शामिल होना है, तो कुछ कागज साइन करना होंगे। इससे आपको मुफ्त दवा मिलना शुरू हो जाएगी। साथ ही जांचें भी फ्री होंगी। मरीज को लगता है इससे अच्छा क्या होगा। उसके राजी होते ही ताबड़तोड़ एक फाइल बनाई जाती है और उससे साइन करवा लिए जाते हैं। फाइल में मरीज का नाम खत्म हो जाता है और उसे एक नंबर दे दिया जाता है। यहीं से वह मरीज से 'सब्जेक्टÓ (विषय) बन जाता है और विदेशी दवा कंपनी की अज्ञात दवा से उसका इलाज शुरू होता है। यह ऐसी दवा होती है, जो केवल संबंधित डॉक्टर के पास ही होती है, बाजार में नहीं मिलती है।
चूंकि सब्जेक्ट से डॉक्टर को बेहद मोटी कमाई होती है, इसलिए उसका विशेष ध्यान रखा जाता है। समय समय पर उसे फोन करके अस्पताल बुलाते हैं। जांच करवाते हैं और कभी-कभी फलों का रस भी पिलाते हैं। कई बार इलाज के दौरान मरीज की तबीयत बिगड़ जाती है, तो कहा जाता है यह सामान्य बात है।
बीमा करवाते हैं, लेकिन क्लेम नहीं दिलवाते
ट्रायल के नियमों के मुताबिक रोगी उर्फ सब्जेक्ट का बीमा करवान अनिवार्य है। डॉक्टर इसका पालन करते हैं, लेकिन जब रोगी की तबीयत बिगड़ती है या उसकी मौत हो जाती है, तो उसे क्लेम नहीं दिलवाया जाता है। दरअसल, क्लेम देने की स्थिति में परिजन पूछ सकते हैं दवा के कारण मौत हुई है क्या? यही वजह है कि इससे बचने के लिए यह तरीका अपनाया जाता है। बीच में मौत होने पर डॉक्टर सब्जेक्ट नंबर वही रहने देते हैं और मरीज बदल देते हैं।
निजी बैंकों में आती रकम
ट्रायल से आने वाली राशि आमतौर पर निजी बैंकों के जरिए आती है, ताकि सरकार एकदम से निगरानी न कर सके। इसके लिए ट्रायल करने वाले डॉक्टरों ने पति या पत्नी या बच्चों के नाम से खाते खुलवा रखे हैं।
बचने के लिए यह करें मरीज
- डॉक्टर से बीमारी और दवा दोनों के बारे में पूरी जानकारी लें।
- किसी कागज पर साइन करवाएं तो उसकी फोटोकॉपी अवश्य लें।
- मुफ्त में ऐसी ही दवाई लें, जो बाजार में भी बिकती हो।
- इलाज के दौरान तबीयत बिगड़े तो किसी दूसरे डॉक्टर से संपर्क करें।
- कोई जोर-जबरदस्ती करे तो ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के तहत शिकायत दर्ज करें।
हर डॉक्टर नहीं करता ट्रायल
ट्रायल में शहर के चंद डॉक्टर ही शामिल हैं, शेष डॉक्टर सेवा के इस पवित्र पेशे का मान बढ़ा रहे हैं। वरिष्ठ डॉक्टरों की राय है कि ट्रायल करने वालों के कारण पूरी बिरादरी कटघरे में है और इनसे लोगों को सचेत किया जाना जरूरी है।
चीफ जस्टिस तक शिकायत
- ड्रग ट्रायल के विरोध में सक्रिय हुआ डॉक्टरों का संगठन
ड्रग ट्रायल करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ शनिवार को राष्टï्रपति, राज्यपाल, मप्र के चीफ जस्टिस और मानवाधिकार आयोग को शिकायत भेज दी गई। डॉक्टरों से जुड़े एक संगठन ने यह पहल की है। संगठन का कहना है कि चंद डॉक्टरों के कारण पूरी बिरादरी बदनाम हो रही है। डॉक्टरी सेवा का पेशा है और ट्रायल एक धंधा है। इससे मनुष्यों के अधिकारों का हनन हो रहा है।
संगठन का नाम स्वास्थ्य समर्पण सेवा है, जिसके सभी सदस्य मेडिको (डॉक्टर) हैं। संगठन प्रमुख डॉ. आनंदसिंह राजे ने बताया ड्रग ट्रायल के जरिए मरीजों की जान जोखिम में डाली जा रही है। इससे संविधान द्वारा प्रदत्त जीवन का अधिकार खतरे में है। ट्रायल में कई किस्म की आर्थिक अनियममितताएं भी होती हैं। यही वजह है कि सभी स्थानों पर शिकायत भेजी गई है। इस मामले में राज्य सरकार का रूख बेहद लजर है, जबकि राज्य के लोग खतरे में है।
पत्रिका की खबरों का आधार
संगठन ने शिकायत में पत्रिका की खोजपरक खबरों का जिक्र भी किया है। डॉ. राजे ने बताया अखबार ने इस मुद्दे को छेड़कर समूचे चिकित्साजगत के कान खड़े कर दिए हैं। कई डॉक्टरों को पता ही नहीं था कि इलाज के नाम पर यह गोरखधंधा भी चल रहा है।
News in Patrika on 18th July 2010
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