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रविवार, जुलाई 25, 2010

एमवायएच अधीक्षक ने खोला ट्रायल अस्पताल

तभी तो नहीं होती दूसरों पर कार्रवाई सरकार को रखा अंधेरे में

एमवायएच में आने वाले गरीब और जरूरतमंद मरीजों को चूहा मानकर विदेशी कंपनियों की दवाइयों का इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए जिम्मेदार डॉक्टर ही इस गोरखधंधे में लिप्त है। अस्पताल अधीक्षक ने ड्रग ट्रायल के लिए अपने घर के पास एक रिसर्च सेंटर खोला और इसमें धड़ल्ले से ट्रायल होती है। इसके लिए उन्होंने न तो सरकार के अनुमति ली है और न ही कमाई का खुलासा किया। 

एमवायएच अधीक्षक डॉ. सलिल भार्गव 76, धार कोठी पर ज्ञानपुष्प रिसर्च सेंटर फॉर चेस्ट एंड एलर्जी डिसीसेज नाम का सेंटर खोला है। क्लीनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री ऑफ इंडिया (सीटीआरआई) के रिकॉर्ड के मुताबिक डॉ. भार्गव वर्तमान में पांच ड्रग ट्रायल कर रहे हैं। ट्रायल प्रोजेक्ट दो करोड़ से अधिक के होने का अनुमान है।
सरकार को भेजी झूठी जानकारी
डॉ. भार्गव ने राज्य सरकार को बताया है कि उन्होंने 2005 से 08 तक सीओपीडी और डायबिटीक नेफ्रोपेथी से जुड़े ट्रायल में 43 मरीजों पर 4.5 लाख रुपए का कारोबार किया, जबकि सीटीआरआई का रिकॉर्ड उनकी कलाई खोल रहा है।

हां, मेरा ही है ज्ञानपुष्प सेंटर

प्र- ज्ञानपुष्प सेंटर से आपका क्या ताल्लुक है?
उ- वह मेरा ही है और मैं वहां प्रेक्टिस करता हूं।
प्र- आपको तो प्रेक्टिस की अनुमति नहीं है?
उ- मैं नॉन प्रेक्टिसिंग एलाउंस नहीं लेता हूं, इसलिए प्रेक्टिस करता हूं।
प्र- इस पर ड्रग ट्रायल्स होते हैं?
उ- हां, कुछ होता है, लेकिन इसकी जानकारी आपको किसने दी।
प्र- वहां पांच ट्रायल चल रहे हैं और सरकार को जानकारी नहीं दी गई?
उ- सरकार ने बस सरकारी अस्पताल की जानकारी मांगी, जो दे दी है। पांच ट्रायल चल रहे हैं।
प्र- क्या आप अस्पताल में चल रहे ट्रायल को बचा रहे हैं?
उ- नहीं, इस बारे में मैं डीन से बात कर रहा हूं। वे कहेंगे तो कार्रवाई होगी।
(एमवायएच अधीक्षक डॉ. सलिल भार्गव से चर्चा)


दमा रोगियों पर डॉ. भार्गव का दांव
- मार्च 2009 से फैलाया जाल 
एमवायएच अधीक्षक डॉ. सलिल भार्गव दमा के रोगियों पर ट्रायल करते हैं। वैसे तो वे 2005 से ही इस मामले में जुड़े हैं, लेकिन मार्च 2009 से ïवे पूरी तरह इस कारोबार में जुट गए।

डॉ. भार्गव के पांच ट्रायल

एक -
7 मार्च 2009 से सिवीयर अस्थमा रोगियों पर सिप्ला कंपनी के लिए इन्हेलर का ट्रायल। स्वयं प्रिंसीपल इन्वेस्टिगेटर। अंडर में देश के दूसरे 14 अस्पतालों में ट्रायल जारी।

दो -
21 अप्रैल 2009 से सिवीयर अस्थमा रोगियों पर यूके की मुंडीफार्मा कंपनी के लिए ट्रायलशुरू किया। इसमें प्रिंसीपल इन्वेस्टिगेटर डॉ. विवेक मल्होत्रा है।

तीन-
2 मई 2009 से सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव्ह पल्मोनरी डिसीस) रोग के लिए विदेशी कंपनी बोहरिंगर इंगेलहिम फार्मास्यूटिकल्स कंपनी की गोली और इन्हेलर का ट्रायल शुरू किया। डॉ. पूजा अग्रवाल उनकी प्रिंसीपल इन्वेस्टिगेटर है।

चार -
6 जून 2009 से ब्रोंकियल अस्थमा के लिए केडिला हेल्थकेयर के लिए 10 मिली ग्राम की गोली का प्रयोग शुरू किया। डॉ. रविंद्र मित्तल उनके प्रिंसीपल इन्वेसिटगेटर हैं।

पांच -
14 अप्रैल 2010 से अस्थमा रोगियों के लिए यूके की कंपनी मुंडीफार्मा रिसर्ज के लिए ट्रायल शुरू किया। डॉ. अताली शेख उनकी प्रिंसीपल इन्वेस्टिगेटर है।

अपराध पर अपराध
- पूर्णकालिक अधीक्षक होने के नाते प्रायवेट प्रेक्टिस की अनुमति नहीं फिर भी कर रहे ड्रग ट्रायल।
- खुद लिप्त इसलिए एमवाय अस्पताल को भी खुले आम ट्रायल का केंद्र बनने दिया।
- सरकार को भेजे संपंत्ति के ब्यौरे में ज्ञानपुष्प रिसर्च सेंटर का जिक्र नहीं किया।

दूसरों को संरक्षण
एमवायएच के कई कमरों में गुपचुप तरीके से ट्रायल का धंधा चल रहा है। 'पत्रिकाÓ के खुलासे के बावजूद प्रबंधन इन पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। माना जा रहा है कि डॉ. भार्गव के संरक्षण में ही यह कारोबार फल-फूल रहा है।



ताबड़तोड़ हुई एथिकल कमेटी की बैठक

- खंगाले नियम कायदे, हिसाब की जानकारी भी मांगी
अप्रमाणिक दवाई गरीब और अनपढ़ मरीजों पर आजमाने के खेल 'ड्रग ट्रायलÓ को अनुमति देने वाली एमजीएम मेडिकल कॉलेज की एथिकल कमेटी की शुक्रवार दोपहर करीब एक बजे ताबड़तोड़ बैठक हुई। कमेटी के स्वतंत्र सदस्यों ने कॉलेज में चल रहे ट्रायल के बारे में विस्तार से जानकारी मांगी और नियम भी खंगाले। करीब दो घंटे की विस्तृत चर्चा के बाद कमेटी मरीजों को अपने हाल पर छोड़कर रवाना हो गई।
पर्यावरणविद् कुट्टी मेनन, अर्थशास्त्री डॉ. जयंतीलाल भंडारी और एडवोकेट योगेश मित्तल के साथ ही कमेटी चेयरमैन डॉ. केडी भार्गव भी बैठक में पहुंचे। गोपनीयता रखने के लिए बैठक एमजीएम मेडिकल कॉलेज के बजाए एमवायएच के चौथी मंजिल स्थित मेडिसीन प्रोफेसर डॉ. अनिल भराणी के कक्ष में हुई। डॉ. भराणी ही कमेटी के सचिव भी हैं। कमेटी ड्रग ट्रायल पर उठ रहे सवालों के जवाब जानना चाहती थी। ट्रायल के नाम पर आने वाली राशि और मरीजों से मुलाकात के प्रश्न भी उठे। कमेटी में आम आदमी शामिल नहीं होने की जिज्ञासा पर ट्रायल कर रहे डॉक्टरों ने समïझाया आम आदमी मतलब नॉन मेडिको (जो डॉक्टर नहीं है) होता है। ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट की अनदेखी करके कमेटी भी संतुष्ट हो गई। कमेटी को यह भी बताया गया कि जिन मरीजों पर प्रयोग होता है, उनमें केवल बीपीएल ही नहीं है, कुछ मध्यमवर्गीय लोगों भी शामिल हैं। विधानसभा के सवालों में उलझे होने का बहाना बनाकर अस्पताल अधीक्षक डॉ. सलिल भार्गव बैठक में नहीं पहुंचे। 
पर्यावरणविद् मेनन ने 'पत्रिकाÓ को बताया वैसे तो पहले भी बैठकें होती रही हैं, लेकिन आज हम लोग मीडिया में उठ रहे सवालों के जवाब तलाशने के लिए एकत्रित हुए थे। इसमें सभी विषयों पर चर्चा हुई है। हम मानते हैं कि इसमें और अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता है। डॉ. भंडारी ने बताया मैं वैज्ञानिक शोध के पक्ष में हूं और कमेटी में भी यही बात उठी। कुछ बातें कमेटी जानना चाहती थी, जिनके ट्रायल करने वाले सदस्यों ने संतोषजनक जवाब दिए हैं।

आंखों के रोगी भी निशाना
- डॉ. पुष्पा वर्मा के नाम ट्रायल रजिस्टर्ड, काम शुरू नहीं फिर भी हुआ रुपए का आदान प्रदान
एमजीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्ररोग विभागाध्यक्ष डॉ. पुष्पा वर्मा ने राज्य सरकार को जानकारी दी है कि वे ड्रग ट्रायल नहीं करती हैं, लेकिन उनके खाते में ट्रायल के नाम पर रुपए का आदान-प्रदान हुआ है। उधर, भारत सरकार का रिकॉर्ड कहता है कि वे 2005 से एमवायएच में आने वाले नेत्र रोगियों पर ट्रायल कर रही हैं। मई 2010 में भी उन्होंने क्यूंटल्स रिसर्च इंडिया मुबंई से टेक्सास की एल्कोन रिसर्च कंपनी के आईड्राप की ट्रायल हाथ में ली है। इस ड्राप की बूंदे वे कंजेक्टेवाइटिस के रोगियों पर आजमाती हैं। उन्होंने 10 नवंबर 2005 और 7 फरवरी 2006 को कुछ सहमति पत्रों पर मरीजों के हस्ताक्षर भी लिए हैं। उनके द्वारा 8 दिसंबर 2007 का क्वंटेल्स रिसर्च इंडिया कंपनी के सीनियर क्लीनिकल रिसर्च एसोसिएट फ्रांसिस विज को लिखे पत्र में इसका जिक्र है। डॉ. वर्मा को इस काम के लिए कुछ राशि भी प्राप्त हुई है।

रुपया तो ट्रेनिंग का मिला था
प्र. ट्रायल से आप इंकार कर रही हैं, जबकि रिकॉर्ड कुछ ओर कहता है?
उ. मैंने ट्रायल के लिए आवेदन दिया था, लेकिन अनुमति नहीं मिली।
प्र. दवा कंपनी ने आपको राशि भी दी है ?
उ. वे तो ट्रेनिंग कार्यक्रम के लिए मिले थे। प्रोजेक्ट तो आया ही नहीं।
प्र. सीटीआरआई ने 21 मई 2010 से आपको एडनोवायरल कंजक्टेवाइटिस में इन्वेस्टिगेटर बताया है?
उ. वह सही है, लेकिन मैंने अभी तक ट्रायल शुरू नहीं किया है। मेरे पास एक भी मरीज रजिस्टर्ड नहीं है।
(डॉ. पुष्पा वर्मा से चर्चा)
 News in Patrika on 17th July 2010

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