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शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

हमें मरीज की जानकारी नहीं रहती

Justice PD Mulaye
  

ड्रग ट्रायल मामले में एथिकल कमेटी सदस्य जस्टिस मूले की साफगोई
स्वास्थ्य राज्य मंत्री हार्डिया ने गड़बड़ी की जिम्मेदारी कमेटी पर डाली


बहुराष्टï्रीय कंपनियों द्वारा विकसित दवाइयों का एमजीएम मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पतालों में आने वाले रोगियों पर धोखे से परीक्षण (ड्रग ट्रायल) करने के मामले में रिटायर्ड जस्टिस पीडी मूल्ये की साफगोई से पूरी प्रक्रिया पर सवालिया निशान लग गया है। ट्रायल को मंजूरी देने वाली कॉलेज की एथिकल कमेटी के सदस्य मूल्ये ने कहा है कि हमें मरीजों की कोई जानकारी नहीं रहती है। रजिस्ट्रेशन से जुड़े दस्तावेज देखकर कमेटी केवल अनुमति देती है। इसके बाद डॉक्टर मरीजों के साथ क्या करते हैं, इसके लिए न तो कमेटी जिम्मेदार है और न ही वह इसकी निगरानी करती है।

बुधवार दोपहर भोपाल में स्वास्थ्य राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया ने मीडियाकर्मियों से चर्चा में कहा कि इंदौर के मेडिकल कॉलेज की कमेटी में जस्टिस मूल्ये जैसे लोग शामिल हैं, इसलिए वहां हो रहे ट्रायल पर शंका नहीं की जा सकती है। इस बयान पर 'पत्रिकाÓ ने जस्टिस मूल्ये से विस्तार से चर्चा की।


ट्रेन का टिकट देते हैं, यात्रा की जानकारी नहीं

प्र- एथिकल कमेटी में आप क्या देखते हैं?
उ- हम संबंधित विभाग और कंपनी की अनुमति देखते हैं। इससे अधिक कुछ नहीं।
प्र- जिन शर्तों पर अनुमति देते हैं, उनका पालन कौन करवाता है?
उ- यह हमारा काम नहीं है। हम प्राथमिक अनुमति देते हैं। ट्रायल बाद में शुरू होता है। न तो हम अस्पताल जाते हैं और न ही उस क्लिनिक में जहां ट्रायल का काम चलता है।
प्र- आपको कितने रुपए मिलते हैं?
उ- एक बैठक के 1000 रुपए मिलते हैं। अब तक 12-13 बैठकों में गया हूं।
प्र- आपको नहीं लगता कि ट्रायल में पारदर्शिता बढ़ाई जाना चाहिए?
उ- उसका मुझे कुछ मालूम नहीं। यह काम कॉलेज का है। हम तो केवल कागज देखते हैं।
प्र- मरीजों के साथ क्या हो रहा है, इस पर आपकी कितनी नजर रहती है?
उ- हमारी कमेटी ट्रेन का टिकट देती है। इसके बाद यात्रा शुरू होती है। टिकट देने वाले को बाकी यात्रा की जानकारी नहीं रहती।
प्र- मंत्री हार्डिया कह रहे हैं, आप हैं तो ट्रायल में शंका नहीं की जा सकती?
उ- हम अनुमति देने तक सीमित हैं, इसके बाद क्या होता है, जानकारी नहीं रहती है।
(रिटायर्ड जस्टिस पीडी मूल्ये से चर्चा)



कॉलेज के भीतर से उठे विरोध के स्वर

ड्रग ट्रायल के खुलासे के बाद कुछ डॉक्टरों ने पूरे मामले को ठंडा करने की कोशिश शुरू की, लेकिन इसका विपरीत प्रभाव हुआ। कॉलेज के भीतर से ही कुछ डॉक्टरों ने विरोध शुरू कर दिया है। ट्रायल के घेरे में आए डॉक्टर चाहते हैं कि पूरा कॉलेज उनका साथ दे, परंतु दूसरे सभी लोगों का कहना है जिसने गलती की है वह स्वयं अपनी लड़ाई लड़े।

'ड्रग ट्रायल मसले से पूरे कॉलेज की बदनामी हो रही है। हम चाहते हैं कि इस पूरे मामले को पूरे चिकित्सा जगत से जोड़कर नहीं देखा जाए। जिसने गलती की है, उसे सजा अवश्य मिलना चाहिए। साथ ही इस विषय से जुड़ी सभी भ्रांतियां भी दूर की जाना चाहिए।Ó
- विक्रांत भूरिया, अध्यक्ष, जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन

'भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा ड्रग ट्रायल के लिए तय किए गए मापदंडों का एमजीएम मेडिकल कॉलेज में पालन नहीं हुआ है। बहुराष्टï्रीय कंपनियां भारत के लोगों को निशाना बना रही है और ताज्जुब की बात तो यह है कि केंद्र व राज्य सरकार ने इसके लिए कोई निगरानी तंत्र तक नहीं बनाया। मरीजों के हित में ट्रायल बंद किया जाना चाहिए।Ó
- डॉ. आनंद राय, अध्यक्ष, मप्र रेसीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन

'चिकित्सा विज्ञान की प्रगति के लिए ड्रग ट्रायल अनिवार्य है, लेकिन देश में इसके संबंध में बने कानून पर पुनर्विचार करना चाहिए। कानून में कई कमियां है, इसी कारण ट्रायल का दुरुपयोग हो रहा है। अंग प्रत्यारोपण जैसा सख्त कानून लागू किया जाना चाहिए ताकि ट्रायल पर पूरा नियंत्रण रहे।Ó
- डॉ. सुमित शुक्ला, उपाध्यक्ष, मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन

'जिन डॉक्टरों पर मरीजों के दुरुपयोग का आरोप लगा है, उन्हें कॉलेज से दूर करके पूरे मामले की जांच की जाना चाहिए। डॉक्टरों पर आरोप सिद्ध न हो तो उन्हें फिर से कॉलेज बुलाया जा सकता है। फिलहाल वे रहे तो जांच प्रभावित हो सकती है क्योंकि वैसे ही ट्रायल मामले में पारदर्शिता की बेहद कमी है।Ó
- शिवाकांत वाजपेयी, अध्यक्ष, मप्र रेडियोग्राफर्स एसोसिएशन



विधानसभा में आज उठेगा मुद्दा
शुक्रवार को विधानसभा में 'पत्रिकाÓ द्वारा उठाए गए ड्रग ट्रायल के मुद्दे पर बहस होगी। रतलाम के विधायक पारस सकलेचा, सरदारपुर के प्रताप ग्रेवाल, इंदौर के सुदर्शन गुप्ता, मंदसौर के यशपालसिंह सिसौदिया समेत करीब सात विधायकों ने इस मसले पर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव दर्ज करवाया है।

News in PATRIKA on 30th July 2010

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