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बुधवार, जुलाई 21, 2010

मरीजों को बना दिया चूहा

- ड्रग ट्रायल के नाम पर एमजीएम मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों में गोरखधंधा
- 5  वर्ष में 6 डॉक्टरों ने 1521 मरीजों पर प्रयोग कर किया 2 करोड़ का करोबार


ड्रग ट्रायल का मतलब
किसी भी दवा या टीके को बाजार में उतारने से पहले उसके प्रभाव को मरीज पर प्रयोग करके देखना ही ड्रग ट्रायल है। विपरीत प्रभाव से इसमें मरीज की जान जाने का खतरा रहता है। 


एमजीएम मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पतालों में आने वाले मरीज यहां के डॉक्टरों की नजर में चूहे से कम अहमियत नहीं रखते हैं। डॉक्टर विदेशी कंपनियों से मिलकर रोगियों पर दवाइयों और टीकों के डोज इस्तेमाल किए जा रहे हैं। इसके एवज में उन्हें मोटी रकम भी मिलती है। पांच वर्ष में ही छह डॉक्टरों ने ड्रग ट्रायल के नाम पर 1170 बच्चों समेत 1521 मरीजों पर प्रयोग करके दो करोड़ का कारोबार किया। सूत्र बताते हैं कि इसके अलावा भी कई  ऐसी दवाइयां भी इस्तेमाल की जा रही है जिन्हें ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने अनुमति नहीं दी है।  ड्रग ट्रायल पर निगरानी के लिए एक इथिकल कमेटी मौजूद है, उसे केवल दवाइयों और कंपनियां के नाम की ही जानकारी दी जाती है। मरीज कौन है, रुपया कितना आता है और इसका हिसाब कैसे रखा जाता है, यह कमेटी नहीं जानती।


सरकार अनभिज्ञ
ड्रग ट्रायल के हिसाब किताब से राज्य सरकार पूरी तरह अनभिज्ञ है। यहां तक कि कॉलेज प्रबंधन को भी पूरी जानकारी नहीं है कि कौन डॉक्टर किस दवाई के ट्रायल में शामिल है।

इन विभागों में ट्रायल के प्रमाण
मेडिसिन, शिशु रोग, सर्जरी, मनोरोग, नेत्ररोग, आर्थोपेडिक, कम्युनिटी मेडिसिन, रेडियोथैरेपी।

पांच वर्ष में किसने क्या किया

डॉ. हेमंत जैन, प्रोफेसर, शिशु रोग विभाग
राशि- 56  लाख 
अवधि-  2005 से अब तक
मरीज- 1170
रोग - बच्चों में ब्रोंकराइटिस, पोलियो, बीपी, हेपेटाइटिस बी, टीटनेस।

डॉ. अनिल भराणी, प्रोफेसर, मेडिसिन विभाग
राशि- 44 लाख
अवधि- 2005 से अब तक
मरीज - 237
रोग- कोरोनरी सिंड्रोम, विटामिन से लकवा, सेकंड स्ट्रोक, स्टेबल एंजाइमा, हार्ट अटैक। 
(डॉ. अपूर्व पुराणिक, डॉ. आशीष पटेल, डॉ. सोनल पगारे भी भागीदार)

डॉ. अपूर्व पुराणिक, प्रोफेसर, मेडिसिन विभाग
राशि- 42 लाख 
अवधि- 2007 से अब तक
मरीज - 39
रोग- पार्किंसन्स, सिवीयर डेमेंशिया, अलझाइमर।


डॉ. अशोक वाजपेयी, पूर्व एचओडी, मेडिसिन (हाल ही में वीआरएस)
राशि- 41.37 लाख
अवधि- 2005 से अब तक
मरीज - 28
रोग- सीओपीडी, अस्थमा, निमोनिया। 
(एसो. प्रोफेसर संजय अवासिया भी भागीदार)

डॉ. सलिल भार्गव, अधीक्षक, एमवायएच
राशि-4.5 लाख
अवधि- 2005 से 08 तक
मरीज - 43
रोग- सीओपीडी, डायबिटीक नेफ्रोपेथी। 

डॉ. शरद थोरा, एचओडी, शिशु रोग
राशि-  2 लाख।
अवधि - 2007-08
मरीज- चार
रोग- पांच वर्ष तक के बच्चों में ब्लड प्रेशर।


इथिकल कमेटी जिम्मेदार 

ट्रायल की 10 प्रतिशत राशि कहां है?
डॉक्टर अपने विभाग को देते हैं। आंकड़ा मुझे नहीं पता।
 पूरी प्रक्रिया पारदर्शी क्यों नहीं है?
 हिंदी में बने सहमति पत्र पर मरीज के साइन होने के बाद ही ट्रायल होती है।
 मरीज के बजाए आप हिसाब में रूचि ले रहे हैं?
 यह काम इथिकल कमेटी देखती है। सवाल कमेटी से पूछें।
(एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत से चर्चा)


कुछ विधायकों के सक्रिय हो जाने के कारण फिलहाल मामला बेहद गरम है, इसलिए अभी इस पर बात नहीं करना चाहता हूं। वैसे भी यह बहुत विस्तृत विषय है और इसे ढंग से समझा जाना चाहिए। इतना जरूर कह सकता हूं, जो ट्रायल ईथिकल कमेटी की मंजूरी से हो रहे हैं, वे डीसीजीआई से स्वीकृत हैं।
- डॉ. केडी भार्गव, चेयरमैन, इथिकल कमेटी, एमजीएम मेडिकल कॉलेज







(14 जुलाई को पत्रिका में प्रकाशित)
- रिपोर्टर शैलेष दीक्षित से सहयोग

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