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बुधवार, जुलाई 21, 2010

ये कैसे अस्पताल

एमवायएच, चेस्ट सेंटर और चाचा नेहरू अस्पताल में प्रशासन की अनुमति के बगैर संचालित हो रहे ऑफिस
कई बाहरी लोग महीनों से कर रहे काम, फैक्स, टेलिफोन की भी नहीं ली अनुमति
ड्रग ट्रायल का गोरखधंधा

निर्माणाधीन केमिकल फार्मूले (दवा) के मरीजों पर प्रयोग के लिए एमजीएम मेडिकल कॉलेज से जुड़े तीन अस्पतालों में ऐसे दफ्तर खुले हैं, जो ड्रग ट्रायल के केंद्र हैं। इनमें करीब तीन दर्जन लोग काम करते हैं, जिन्हें ड्रग ट्रायल करने वाले डॉक्टर ही तनख्वाह देते हैं। इन दफ्तरों में कम्प्यूटर, स्केनर, प्रिंटर के साथ ही फैक्स और अलग से लैंड लाइन फोन भी लगे हैं। इस सबकुछ के लिए किसी से भी इजाजत नहीं ली गई।
कैमरा देखते ही भागखड़े हुए

एक
चेस्ट सेंटर के एक कोने में बने कमरा नंबर छह में पल्मोनरी फंक्शन लेब में ड्रग ट्रायल होता है। इसमें किसी को झांककर देखने की अनुमति भी नहीं है। कैमरा देखते ही काम कर रहे संजयसिंह चौहान ने कमरा बंद कर लिया और मेडिसिन विभाग के जूनियर डॉक्टर को बुलाने भागा। डॉक्टर ने कहा इन्हें कमरे में मत जाने देना। संजय ने बताया मैं यहां डॉक्टर साहब का काम करता हूं।

दो
एमवाय अस्पताल की तल मंजिल स्थित डॉ. अपूर्ण पुराणिक के चेंबर के बाहर वाले कमरे में बक्सों के ठेर रखे हुए हैं। विदेशों से दवाइयां इन्हीं में पैक होकर यहां पहुंचती है। उनके कर्मचारियों ने बताया अंदर तो फैक्स और टेलिफोन भी लगे हैं। इसकी जानकारी एमवायएच अस्पताल प्रबंधन को दे रखी है।

तीन
एमवायएच की चौथी मंजिल के कमरा नंबर 419 बी में तीन से चार एवजी काम करते हैं। कमरे का दरवाजा खुलते ही बंद हो जाता है। कैमरा देखते ही राकेश नाम के कर्मचारी ने कहा यहां फोटो मत खींचो। उसने अपने चेहरे को हाथ से दबाने की कोशिश भी की। बाहर निकलते हुए अरविंद खुद को ईसीजी टेक्नीशिन बताता है। फोटो लेने पर भागकर पास के ही एक कमरे में जाकर वहां मौजूद जूनियर डॉक्टरों को बताता है। वे बाहर आकर मोबाइल लगाना शुरू कर देते हैं।

 चार
चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय के कमरा नंबर 14 में दो युवतियां और चार युवक कार्यरत थे। वहां से फाइलों से भरे बक्सों को बाहर किया जा रहा था। मौजूद आशीष दुबे ने विरोध किया आप किसकी अनुमति से फोटो खींच रहे हैं। जब उनसे प्रतिप्रश्न हुआ आप किसकी अनुमति से यहां काम कर रहे हो, तो वे चुप हो गए। उन्होंने तत्काल कर्मचारी को कहा कमरा बंद कर लो।


संजय नाम का कोई व्यक्ति हमारा कर्मचारी नहीं है और न ही किसी को फैक्स या टेलीफोन लगाने की अनुमति दी गई है।
- डॉ. एम. हरगुनानी, अधीक्षक, चेस्ट सेंटर

हमारे यहां वैक्सीन पर ड्रग ट्रायल हो रहा है और इसी के दस्तावेजी काम के लिए कुछ नॉन मेडिको लोग काम करे हैं। वे हमारे कर्मचारी नहीं है।
- डॉ. शरद थोरा, अधीक्षक, चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय

मुझे जानकारी नहीं है कि अस्पताल में कोई गैर व्यक्ति भी कार्यरत है। अस्पताल में किसी ने अलग से फैक्स या टेलिफोन लगा रखे हैं, तो यह अवैधानिक है। मुझसे किसी ने भी इजाजत नहीं ली है।
- डॉ. सलिल भार्गव, अधीक्षक, एमवाय अस्पताल

मुझे अभी तक किसी ने जानकारी नहीं दी है। इस संबंध में मैं अस्पताल अधीक्षकों से पूछताछ करूंगा।
- डॉ. एमके सारस्वत, डीन, एमजीएम मेडिकल कॉलेज

उठते सवाल
- अस्पताल के मरीजों की सुरक्षा के लिए क्या इंतजाम किए गए हैं?
- महीनों से अनजान लोग अस्पताल में काम कर रहे हैं, फिर भी अनदेखी क्यों की गई?
- दफ्तरों में हो रहे बिजली खर्च के लिए कौन है जिम्मेदार?




शोध के नाम पर धोखा


एमजीएम मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टर ड्रग ट्रायल को अपने शोध का विषय बताकर पेश कर रहे हैं। कॉलेज की ही एक प्रोफेसर ने इसकी पुरजोर विरोध भी किया है। उन्होंने कहा है यह शोध नहीं है, बस ट्रायल है। इसमें पीजी छात्रों को नहीं जुडऩा चाहिए।
जनवरी 2009 में कॉलेज काउंसिल की बैठक में थीसिस रिव्यू कमेटी की चेयरमैन डॉ. प्रीति तनेजा ने ड्रग ट्रायल का मसला उठाते हुए कहा था कि पीजी छात्र ट्रायल को रिसर्च की तरह पेश कर रहे हैं, जबकि इसकी इजाजत नहीं है। इस पर तत्काल बंदिश लगना चाहिए। डॉ. तनेजा का विरोध कुछ दिन चर्चा में रहा और बाद में इस कार्य में शामिल कुछ प्रोफेसर ने कॉलेज डीन कक्ष के सामने वाले हॉल में रंगरोगन, टाइल्स और कुलर का इंतजाम करवाकर मामला शांत कर दिया।

इन विभागों में सबसे अधिक ट्रायल
मेडिसिन, आर्थोपेडिक्स, नेत्ररोग, शिशु रोग, न्यूरोलॉजी, चेस्ट और सर्जरी विभागों में ड्रग ट्रायल सर्वाधिक होते हैं। कैंसर अस्पताल में भी कुछ कंपनियों के प्रस्ताव लंबित हैं।

दवा कंपनियां व संस्थाएं
पेनेशिया बायोटेक, मर्क शॉप एण्ड डोम, नोवर्टिस, एलजी लाइफ साइंस, जॉन्सन एण्ड जॉन्सन, सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, क्रूसिल, नोवर्टिस, फॉरेडिल, इनहेल्ड मोमेटेसोन फ्यूरेट, फॉर्मेट्रॉल कॉम्बीनेशन और फॉर्मेट्रॉल, टेलावेंसीन वर्सेस वेन्सोमायसिन, ऑस्ट्रेलियन मेडिकल काउंसिल, सेंट जोंस मेडिकल कॉलेज बैंग्लूरू, मैक मास्टर यूनिवर्सिटी कनाड़ा, केडिला फार्मास्यूटिकल्स, बीएमएस, पीपीडी, सर्वियर, ड्यूक मेडिकल यूनिवर्सिटी, सेंक्यो फार्मा डेवलपमेंट, नोवर्टिस।


एक प्रोफेसर उठा चुकी हैं मुद्दा
जनवरी 2009 में कॉलेज काउंसिल की बैठक में थीसिस रिव्यू कमेटी की चेयरमैन डॉ. प्रीति तनेजा ने ड्रग ट्रायल का मसला उठाते हुए कहा था कि पीजी छात्र ट्रायल को रिसर्च की तरह पेश कर रहे हैं, जबकि इसकी इजाजत नहीं है। इस पर तत्काल बंदिश लगना चाहिए। यह बात कुछ दिन चर्चा में रही और बाद में सांठगांठ में शामिल कुछ डॉक्टरों ने कॉलेज डीन कक्ष के सामने वाले हॉल में रंगरोगन, टाइल्स और कुलर का इंतजाम करवा दिया।

एक वर्ष में दस जूडॉ को विदेश यात्रा
ड्रग ट्रायल के धंधे में विदेशों में जाकर दवा के असर की रिपोर्ट पेश करना होती है। सरकारी सेवा में होने के कारण सिनीयर कंसल्टेंट बगैर अनुमति के नहीं जा सकते हैं, इसलिए वे अपने मातहत पढ़ाई कर रहे जूनियर डॉक्टरों को भेजते हैं। सूत्रों के मुताबिक एक वर्ष में दस से अधिक जूडॉ विदेश जा चुके हैं। डॉ. सचिन सेठी, गौरव मोहन, प्रोमिता चौधरी, दीलिप सिंह, मयंक जैन, आशीष जैन, प्रज्ञा जैन, मीना ढोले, अब्दुल मंसूर, वरुण कटारिया इनमें शामिल हैं। इनमें से कुछ अब कॉलेज छोड़ चुके हैं।


(14 जुलाई को पत्रिका में प्रकाशित)
- रिपोर्टर शैलेष दीक्षित से सहयोग

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