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रविवार, जुलाई 25, 2010

बाले-बाले होते ड्रग ट्रायल के फैसले

एथिकल कमेटी के सचिव डॉ. अनिल भराणी भी कर रहे ट्रायल
एमजीएम मेडिकल कॉलेज में बनी कमेटी की बुनावट पर उठे सवाल


अप्रमाणिक दवाई मरीजों पर आजमाने के खेल 'ड्रग ट्रायलÓ को अनुमति देने वाली एमजीएम मेडिकल कॉलेज की एथिकल कमेटी भी सवालों के घेरे में है। इस कमेटी के सचिव ऐसे डॉक्टर हैं, जो स्वयं ड्रग ट्रायल में शामिल हैं, जबकि ड्रग एवं कास्मेटिक एक्ट के मुताबिक ऐसा नहीं किया जा सकता।
 
एथिकल कमेटी के सचिव डॉ. अनिल भराणी है। वे मेडिसीन विभाग के प्रोफेसर भी हैं। वे 2005 से अब तक 237 मरीजों पर करीब 44 लाख की ट्रायल कर चुके हैं। दिल के रोगियों पर हो रहे उनके ट्रायल में डॉ. अपूर्व पुराणिक, आशीष पटेल, सोनल पगारे भी भागीदार रहे हैं।

आम आदमी भी नहीं रखा
कानून में स्पष्ट है कि कमेटी में पांच नॉन मेडिको (जो डॉक्टर न हों) प्रतिनिधि रहें। इसमें एक आम आदमी होना चाहिए। वर्तमान में रिटायर्ड जस्टिस पीडी मूल्ये, पर्यावरणविद कुट्टी मेनन, अर्थशास्त्री डॉ. जयंतीलाल भंडारी एवं एडवोकेट योगेश मित्तल चार ही सदस्य हैं। सामान्य व्यक्ति कोई नहीं है।

आज तक नहीं देखे मरीज
ट्रायल करने वाले डॉक्टरों ने आज तक किसी मरीज से कमेटी सदस्यों से मुलाकात नहीं करवाई है। कुट्टी मेनन कहते हैं केवल दवा और दवा कंपनियों की जानकारी दी जाती है। आज तक किसी मरीज से नहीं मिले। 

गोपनीयता का हथकंडा
ट्रायल के गोरखधंधे का खुलासा किए जाने के बाद इसमें लिप्त लोगों ने गोपनीयता को अपना हथियार बनाना शुरू कर दिया है। एथिकल कमेटी ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन को पत्र लिखकर गुहार लगाई है कि ट्रायल की पूरी जानकारी देने को लोग तैयार हैं, लेकिन जानकारी गोपनीय रखी जाए। कमेटी के इस प्रस्ताव से सेंट्रल ट्रायल्स रजिस्ट्री इंडिया (सीटीआरआई) के उस नियम का मजाक उड़ रहा है, जिसका गठन ही ट्रायल को पूरी तरह पारदर्शी बनाने के लिए हुआ। 

अपने ट्रायल में वोट नहीं करता
जब मेरे ड्रग ट्रायल के बारे में विचार होता है, तो मैं राय नहीं देता हूं और न ही किसी मसले पर वोट ही करता हूं। कमेटी में एक सामान्य व्यक्ति का जो प्रस्ताव है, उसका अर्थ नॉन-मेडिको होता है और ऐसे व्यक्ति को हमने कमेटी में रखा है। वह फार्मेकोलॉजी का प्रोफेसर भी हो सकता है और कोई सामाजिक सदस्य भी।
- डॉ. अनिल भराणी, सचिव, एथिकल कमेटी, एमजीएम मेडिकल कॉलेज


क्या करें...में उलझा एमजीएम
दो जिज्ञासु विधायकों के सवालों से एमजीएम मेडिकल कॉलेज में भारी उथल-पुथल हो गई है। ड्रग ट्रायल से जुड़े सवालों के जवाब से प्रोफेसरों को कैसे बचाएं, इसी गहमागहमी में गुरुवार को रात आठ बजे तक मेडिकल कॉलेज में काम चलता रहा। संभवत: शुक्रवार सुबह एक व्यक्ति को जानकारी से साथ भोपाल रवाना किया जाएगा। कॉलेज चाहता था कि फैक्स से जानकारी भेजी जाए, लेकिन संचालक चिकित्सा शिक्षा ने ऐसा करना से इंकार कर दिया। मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत ने इस बारे में कुछ भी कहने से इंकार किया।

News in Patrika on 16th July 2010

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