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शुक्रवार, सितंबर 03, 2010

व्हिसल ब्लोअर के पक्ष में उतरे मेडिकल छात्र

जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल उकसाने के आरोप में बर्खास्त किए गए एमजीएम मेडिकल कॉलेज के सीनियर रेसीडेंट डॉ. आनंद राय के पक्ष में 73 मेडिकल छात्र सामने आ गए हैं। ये सभी 2005 से 2007 की एमबीबीएस बेच के छात्र हैं। छात्रों ने डॉ. राय की बर्खास्तगी का कारण उनका व्हिसल ब्लोअर (भ्रष्टाचार सचेतक) होना बताया है।

छात्रों ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन को एक पत्र लिखा है। इसके मुताबिक डॉ. राय पर की गई कार्रवाई पूर्वाग्रह से ग्रसित है। उन्होंने व्यवस्था में रहकर कुछ डॉक्टरों द्वारा ड्रग ट्रायल के जरिए मरीजों के साथ हो रहे धोखे का खुलासा किया है, इसीलिए बाहर किया गया। छात्रों ने यह तथ्य भी उजागर किया है कि कॉलेज काउंसिल की जिस बैठक में डॉ. राय को बाहर करने का निर्णय लिया है, उसमें 38 में से 16 सदस्य ही इसमें शामिल थे, जो कि कोरम का अभाव है। छात्रों ने डॉ. राय का निलंबन समाप्त करने की मांग की है।

हाईकोर्ट ने कॉलेज को दी पोस्ट भरने की छूट
डॉ. आनंद राय द्वारा दायर याचिका पर बुधवार को इंदौर हाईकोर्ट ने मेडिकल कॉलेज को छूट दे दी कि वह नेत्र रोग विभाग में सीनियर रेसीडेंट के रिक्त पद को भर ले। पिछली सुनवाई में जस्टिस एससी शर्मा ने पद भरने पर रोक लगाई थी। शासकीय अधिवक्ता विवेक पटवा ने बताया कोर्ट ने पद भरने का आदेश देते हुए केस में अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद रखी है। उधर, मेडिकल कॉलेज प्रबंधन 30 अगस्त को ही पद पर भर्ती के लिए साक्षात्कार ले चुका है। संभावना है कि शुक्रवार को पद भर लिया जाएगा। 

पत्रिका : ०२ सितम्बर २०१० 

ड्रग ट्रायल में सुस्ती का संक्रमण

- चिकित्सा शिक्षा विभाग ने एक महीने में कमेटी ही बना सका


बहुराष्टरीय कंपनियों द्वारा विकसित दवा के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) के मामले में चिकित्सा शिक्षा विभाग ने एक महीने में महज एक कमेटी का गठन ही किया है। न तो इस कमेटी की बैठक हुई है और न ही अब तक किसी दूसरे राज्य के कानूनों का अध्ययन ही किया गया।
चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया ने 30 जुलाई को विधानसभा में तीन सदस्यों की कमेटी बनाकर राज्य में ड्रटग ट्रायल पर कानूनी बंदिश लगाने की घोषणा की थी। विभाग के प्रमुख सचिव और कमेटी चेयरमैन आईएस दाणी ने बुधवार को बताया कि कमेटी तीन के बजाए पांच सदस्यों की बनाई गई है। इसमें विधि विभाग के प्रमुख सचिव पीसी मीणा के साथ ही संचालक चिकित्सा शिक्षा डॉ. वीके सैनी, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. भरत छपरवाल और भोपाल के डॉ. एनआर भंडारी सदस्य हैं।


बंदिश नहीं होने से मरीजों की जान सांसत में
अभी तक राज्य में ड्रग ट्रायल की निगरानी की कोई व्यवस्था मौजूद नहीं है। यही वजह है कि पिछले पांच वर्षों में बहुराष्टï्रीय कंपनियों ने राज्य के प्रतिष्ठित डॉक्टरों के जरिए मरीजों पर धड़ल्ले से दवाओं के ट्रायल किए। सरकारी के साथ ही निजी क्षेत्रों में अंधाधुंध ट्रायल हो रहे हैं। पांच वर्ष में मप्र के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हुए ट्रायल से ही 51 रोगियों पर दुष्प्रभाव हुआ। इनमें से कुछ की मौत की भी आशंका है। विधायक पारस सकलेचा और प्रताप ग्रेवाल ने इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया था। स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति के अध्यक्ष डॉ. आनंद राजे की शिकायत पर आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) डॉ. अपूर्व पुराणिक, डॉ. अनिल भराणी, डॉ. पुष्पा वर्मा, डॉ. हेमंत जैन, डॉ. सलिल भार्गव और डॉ. अशोक वाजपेयी की जांच कर रहा है।

पत्रिका: 02 सितंबर 2010


ड्रग ट्रायल का एक ओर कागज ईओडब्ल्यू पहुंचा
मेडिसिन प्रोफेसर डॉ. अनिल भराणी और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. आशीष पटेल द्वारा एक ड्रग ट्रायल के लिए एमजीएम मेडिकल कॉलेज को स्पांसर कंपनी पहुंचाने का दस्तावेज भी ईओडब्ल्यू पहुंच गया है। वहां इसे जांच में भी लिया जा चुका है। सूत्रों के मुताबिक ईओडब्ल्यू इसे गंभीर आर्थिक अपराध मान रहा है, क्योंकि कॉलेज को कंपनी बताने की जानकारी कॉलेज प्रबंधन को नहीं है। 'पत्रिकाÓ ने ही इसका खुलासा किया है।

पत्रिका: 0३ सितंबर 2010