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रविवार, जुलाई 25, 2010

बगैर अनुमति मरीजों पर थोपी ट्रायल

- एमजीएम मेडिकल कॉलेज की ड्रग ट्रायल अवैध
- क्लिनिकल ट्रायल एग्रीमेंट पर सात वर्ष से किसी भी डीन ने नहीं किए हस्ताक्षर


एमवाय अस्पताल, चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय और चेस्ट सेंटर में जाने वाले गरीब और जरूरतमंद रोगियों (दूधमुंहे बच्चे भी शामिल) पर विदेशी कंपनियों की दवाइयों के ट्रायल बगैर प्रशासनिक अनुमति के थोपे गए। तीनों अस्पताल एमजीएम मेडिकल कॉलेज के अधीन आते हैं और सात वर्ष से किसी भी डीन ने ट्रायल के समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए हैंï। क्लिनिकल ट्रायल एग्रीमेंट (सीटीए) नाम के इस समझौते पर स्पांसर कंपनी और ट्रायल करने वाले डॉक्टर के साथ ही संस्थान प्रमुख के हस्ताक्षर जरूरी हैं।

केंद्रीय स्वास्थ्य संचालनालय ने ट्रायल को पारदर्शी बनाने के लिए सीटीए के संबंध में स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं कि जिस संस्थान में दवा आजमाईश होती है, उसकी जानकारी के लिए थ्रीपार्टी समझौता अनिवार्य है। संस्थान प्रमुख के हस्ताक्षर के बाद ही ट्रायल शुरू की जाना चाहिए। इस लिहाज से एमवायएच, चाचा नेहरू अस्पताल व चेस्ट सेंटर में होने वाले ट्रायल की जानकारी एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन को होना अनिवार्य है, परंतु वर्ष 2003 से अब तक किसी भी डीन ने सीटीए देखा तक नहीं है। फरवरी 2007 से पहले एमवायएच अधीक्षक रहे डॉ. डीके जैन ने जरूर कुछ समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद के दोनों अधीक्षकों का कहना है हमने कभी किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए। 

इसलिए तो नहीं छुपाते समझौता
सीटीए में ट्रायल के लिए डॉक्टर को दी जाने वाली राशि के साथ ही यह भी बताया जाता है कि कब कितनी राशि किस एकाउंट नंबर में जाएगी। एक मरीज पर आने वाले खर्च, मरीज की बीमा पॉलिसी की राशि के साथ ही यह भी उल्लेख रहता है कि मरीज की तबीयत बिगडऩे पर उसका उपचार कैसे और कहां किया जाएगा।

उठते सवाल
- जब किसी जिम्मेदार अधिकारी ने अनुमति नहीं दी, तो ट्रायल कैसे किए जा रहे हैं?
- बगैर समझौते के किसी आधार पर गरीब मरीजों की जिंदगियों को खतरे में डाला गया?
- एथिकल कमेटी ने भी कभी समझौते के दस्तावेज देखने की कोशिश क्यों नहीं की?
- ट्रायल पर उठे सवालों के बावजूद अब तक चिकित्सा शिक्षा विभाग ने सीटीए दस्तावेज क्यों नहीं मांगे?



बोले डीन

'मैंने आज तक न तो सीटीए देखा है और न ही साइन किए हैं। ट्रायल करने वाले एथिकल कमेटी के सामने पेश होते हैं और वहीं से अनुमति ले लेते होंगे।Ó
- डॉ. एमके सारस्वत, डीन, एमजीएम मेडिकल कॉलेज
(कार्यकाल- 29 जनवरी 2007 से 2 जनवरी 2008 तक और 12 फरवरी 2009 से अब तक)


'सीटीए पर हस्ताक्षर आमतौर पर एमवायएच वाले ही करते हैं। मुझे किसी हस्ताक्षर का अंदाज नहीं।Ó
- डॉ. अशोक वाजपेयी, पूर्व प्रभारी डीन, एमजीएम मेडिकल कॉलेज
(कार्यकाल- 2 जनवरी 2008 से 11 फरवरी 2009 तक)

'ड्रग ट्रायल से जुड़े किसी भी दस्तावेज मैंने हस्ताक्षर नहीं किए हैं। न तो मैंने ट्रायल किए और न ही इसे बढ़ावा दिया।Ó
- डॉ. वीके सैनी, संचालक चिकित्सा शिक्षा, मप्र
(दिसंबर 2009 से 29 जनवरी 2007 तक कॉलेज डीन रहे)


बोले अधीक्षक
'ट्रायल के पहले सीटीए पर हस्ताक्षर किए जाते हैं, लेकिन एमवायएच मामले में आज तक हस्ताक्षर नहीं किए।Ó
- डॉ. सलिल भार्गव, अधीक्षक, एमवायएच
(कार्यकाल- जुलाई 2008 से अब तक)


 'सीटीए के किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर की जानकारी मुझे नहीं है। ट्रायल के किसी कागज से मेरा नाता नहीं रहा।Ó
- डॉ. सीवी कुलकर्णी, एचओडी, पैथोलॉजी, एमजीएम मेडिकल कॉलेज
(फरवरी 2007 से जुलाई 2008 तक एमवायएच अधीक्षक)


'मैंने कुछ समझौतों पर साइन किए थे। वैसे करना डीन को थे, लेकिन ट्रायल हमारे यहां होते थे, इसलिए मैंने किए।Ó
- डॉ. डीके जैन, पूर्व अधीक्षक, एमवायएच
(फरवरी 2007 से पूर्व करीब दो वर्ष तक अधीक्षक रहे)




ड्रग ट्रायल पर तैयार नहीं हुआ जवाब
-  रोगियों को प्रयोगशाला बनाने का मामले में बेहद सावधानी बरत रही सरकार


मरीजों को प्रयोगशाला की तरह इस्तेमाल करने के गोरखधंधे 'ड्रग ट्रायलÓ के बारे में सरकार की पास पहले से कोई जानकारी मौजूद नहीं थी, इसका खुलासा भी अब हो गया है। एक विधायक द्वारा करीब 20 दिन पहले जो प्रश्न विधानसभा में जवाब के लिए लगाया था, उसका जवाब तय तारीख तक तैयार ही नहीं हो सका। सरकार ने विधायक को आश्वस्त किया है कि शीघ्र ही उत्तर पटल पर रख दिया जाएगा।

सरदारपुर के प्रताप ग्रेवाल, रतलाम के पारस सकलेचा और ग्वालियर के प्रद्धुम तोमर ऐसे विधायक हैं जिन्होंने राज्य में पहली बार ड्रग ट्रायल के विषय को उछाला है। तीनों ने ही इंदौर एमजीएम मेडिकल कॉलेज में जारी ड्रग ट्रायल, इसकी अनुमति, इसमें जुड़े डॉक्टर, मरीज, रुपए का लेन-देन, केंद्र-राज्य सरकार की भूमिका जैसे सवाल पूछे हैं। करीब दो सप्ताह से कॉलेज जानकारी जुटा रहा है। शुक्रवार को ग्रेवाल को जवाब मिलना था। उन्होंने जब सदन में इसकी मांग की, तो बताया गया फिलहाल जवाब तैयार नहीं हुआ है। माना जा रहा है कि इस मामले में सरकार की जानकारी शून्य थी और कई बिंदु ऐसे हैं, जिनके बारे में कोई माकूल जवाब ही नहीं मिल रहा है। इसी के चलते बेहद फूंक-फूंककर कदम उठाए जा रहे हैं। इधर, एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत का कहना है भोपाल से मांगी गई हर जानकारी भेज दी गई है। सभी प्रश्नों के बिंदुवार जवाब दिए गए हैं।
News in Patrika on 24th July 2010

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