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शुक्रवार, अक्तूबर 01, 2010

ड्रग ट्रायल पर सितम्बर में लिखी ६ खबरें

ड्रग ट्रायल की फाइल पहुंची सोनिया दरबार

- दिल्ली में विधिवत कार्रवाई शुरू
- शिकायतकर्ता ने उठाई सीबीआई जांच की मांग


बहुराष्टï्रीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवाइयों के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) में मध्यप्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बरती गई कौताही की पूरी फाइल संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी तक पहुंच गई है। उन्होंने इस पर विधिवत कार्रवाई भी शुरू कर दी है। शिकायतकर्ता ने मामले में सीबीआई जांच की मांग की है।

स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति के अध्यक्ष डॉ. आनंद राजे ने सोनिया गांधी को शिकायत भेज कर तमाम तथ्य उजागर किए थे। उन्हें सोमवार को कांग्रेस महासचिव बीके हरिप्रसाद का एक पत्र मिला है। इसमें लिखा गया है कि मामले को सोनिया गांधी ने अत्यंत गंभीरता से लिया है और उन्होंने संबंधित पक्ष को कार्रवाई करने और इसकी जानकारी देने को कहा है।

दोषियों के बचाव में है राज्य सरकार
डॉ. राजे का आरोप है कि देश-दुनिया में जो मसला उठ चुका है, उसपर ठोस कार्रवाई करने के बजाए राज्य सरकार दोषियों को बचाने में लगी है। करीब दो महीने पूरे हो चुके हैं, लेकिन अभी तक ईओडब्ल्यू ने अंतिम रिपोर्ट तैयार नहीं की है। इतना ही नहीं, विधानसभा में स्वास्थ्य राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया ने जो कमेटी गठित करने की घोषणा की थी, उसकी अभी तक बैठक भी नहीं हुई है।

अमेरिकन सरकार भी मांग चुकी सफाई
'पत्रिकाÓ ने 14 जुलाई के अंक में 'मरीज को बना दिया चूहाÓ शीर्षक से खबर प्रकाशित कर खुलासा किया था कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में आने वाले गरीब और अनपढ़ मरीजों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इसके बाद मामला विधानसभा, ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त, आयकर, एमसीआई, आईसीएमआर तक पहुंचा। हाल ही में अमेरिकन सरकार के फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन ने भी भारत सरकार को इस संबंध में पत्र लिखकर सफाई मांगी है।

यह किया उल्लंघन
- एमसीआई द्वारा तय की गई डॉक्टरों की 'मर्यादाओंÓ को लांघा।
- आईसीएमआर के मापदंडों का ताक में रखा।
- मरीजों को धोखे में रखकर ट्रायल में झोंका।
पत्रिका : २८ सितम्बर २०१०

भारतीय मरीज का डीएनए विदेश किसकी अनुमति से भेजा?

- ड्रग ट्रायल के लिए खून के नमूनों की विदेश यात्रा पर उठा सवाल
- आईसीएमआर ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज को भेजा पत्र



बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवा के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज को एक पत्र लिखा है। परिषद जानना चाहती है कि जिन भारतीय रोगियों पर ट्रायल किया गया है, उनके खून के नमूने किसकी इजाजत से विदेश भेजे गए? क्या इसमें नियमों का पालन हुआ है?

कॉलेज के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया जिन डॉक्टरों ने ट्रायल किए है, उन्हें आईसीएमआर के पत्र के आधार पर जवाब-तलब किया जा रहा है। यह मसला बायोलॉजिकल प्रोडक्ट कानून से जुड़ा हुआ है। अभी तक इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया था। माना जा रहा है यह कॉलेज प्रबंधन और पूरे विभाग के लिए नई मुसीबत का कारण बनेगा। उधर, ट्रायल में लिप्त एक डॉक्टर ने 'पत्रिकाÓ को बताया जो दवा कंपनी ट्रायल करवाती है, वह अपनी उ'च क्षमता लेबोरेटरी में नमूनों को परखना चाहती है, यही वजह है कि नमूने विदेश भेजे जाते हैं। उन नमूनों का और क्या इस्तेमाल होता होगा, यह किसी को अंदाजा नहीं है।

आरटीआई से जुड़ा मसला
दरअसल, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता रोली शिवहरे ने आईसीएमआर से सवाल पूछा था कि ट्रायल से गुजर रहे मरीजों के खून, मूत्र, स्वाब आदि के नमूने जांच के लिए विदेश भेजे जाते हैं। इसकी अनुमति ली गई है या नहीं? यदि हां, तो किस कानून के तहत? इन सवालों के जवाब जब आईसीएमआर को नहीं मिले, तो उन्होंने मध्यप्रदेश स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभागों को पत्र लिखकर जानकारी चाही है।



पत्रिका : २६ सितम्बर २०१०
 

फिर से भेजो ड्रग ट्रायल के दस्तावेज

- यूएसएफडीए के संज्ञान के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग का मेडिकल कॉलेज को फरमान

यूनाइटेड स्टेट्स के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा मध्यप्रदेश में हुए ड्रग ट्रायल पर संज्ञान लिए जाने के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग ने नए सिरे से पूरे मामले की जांच शुरू कर दी है। विभाग ने सभी मेडिकल कॉलेजों से फिर से वे दस्तावेज भोपाल बुलवाए हैं, जिनमें ड्रग ट्रायल की जानकारी छुपी है। कॉलेज में इसको लेकर भारी गहमागहमी बनी हुई है।

बहुराष्टï्रीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवा के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) पर यूएसएफडीए ने केंद्र सरकार को पत्र लिखा है। विभागीय सूत्रों का कहना है पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी कर ली गई थी, परंतु अब दृश्य बदल गया है। विभाग ने विधानसभा सवालों के जवाब के लिए तैयार दस्तावेजों को एक बार फिर से खंगालना शुरू किया है।

पत्रिका : २२ सितम्बर २०१०

काले कारनामों पर पोत दी कालिख

- एमजीएम मेडिकल कॉलेज में सूचना का अधिकार का माखौल
- कालिख पोत को जानकारी देने का संभवत: देश का पहला मामला


एमजीएम मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने सूचना का अधिकार कानून का माखौल उड़ाते हुए एकाउंट से जुड़े एक दस्तावेज पर जानबूझकर कालिख पोत दी। आवेदक को यह जानकारी देते हुए कालिख पोतने का जिक्र भी प्रबंधन ने किया है। सूचना का अधिकार का इस तरह से मजाक बनाने की संभवत: यह देश का पहला मामला है।

मामला बहुराष्टरीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवाओं के मरीज पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) से जुड़ा है। स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति के सदस्य डॉ. आनंद राय ने कॉलेज के विभिन्न विभागों को ट्रायल के लिए मिले रुपए की ऑडिट रिपोर्ट मांगी थी। मेडिसिन विभाग ने वर्ष 2010 की ऑडिट रिपोर्ट तो दी लेकिन कई महत्वपूर्ण आंकड़ों पर कालिख पोत दी। ऑडिट रिपोर्ट सरिता मूंदड़ा ने तैयार की है। मूंदड़ा के पते और फोन नंबर पर भी कालिख पोती गई है। साथ ही कवरिंग पत्र में यह भी लिख दिया कि आवेदन द्वारा चाही गई जानकारी से यह संबंधित नहीं है, इसलिए इस पर काले रंग का प्रयोग करके इसे अपठनीय बनाया गया है। उधर, आवेदक का कहना है मैंने संपूर्ण ऑडिट रिपोर्ट मांगी थी, इसलिए उसका सीधा-सीधा मेरे आवेदन से संबंध है। ट्रायल के नाम पर हुए हेरफेर को छुपाने के लिए यह कार्रवाई की है। इसके विरूद्ध मैं संचालक चिकित्सा शिक्षा को अपील कर रहा हूं।

साढ़े 13 लाख का हिसाब छुपाया
ऑडिट रिपोर्ट में स्पष्ट है कि 31 मार्च 2010 तक मेडिसिन विभाग की साइंटिफिक कमेटी के खाते में 13.47 लाख रुपए आए हैं। कालिख से यह छुपा लिया गया है कि यह किन लोगों में बंटा।



जानकारी छुपाने वाले विभाग पर गंभीर आरोप

मेडिसिन विभाग के डॉ. अनिल भराणी, डॉ. आशीष पटेल, पूर्व एचओडी डॉ. अशोक वाजपेयी पर गंभीर आरोप है कि इन्होंने राज्य सरकार को जानकारी दिए बगैर ट्रायल करके अकूत संपत्ति जुटाई है। डॉ. भराणी और डॉ. पटेल ने तो एक ट्रायल के लिए एमजीएम मेडिकल कॉलेज को स्पांसर कंपनी बताने तक का खेल कर दिया है।

'संभवत: यह देश का पहला मामला है, जब जानकारी पर कालीख पोती गई है। नि:संदेह जानकारी छुपाने की कोशिश के चलते यह कदम उठाया होगा। वही जानकारी छुपाई जा सकती है, जिससे शांति भंग होने या देश की गोपनीयता को खतरा हो। हम इसे राष्टï्रीय स्तर पर बहस का मुद्दा बनाएंगे।
- रोली शिवहरे, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता

'आवेदक को इसके विरूद्ध अपील करना चाहिए। साथ ही जिस दस्तावेज पर कालिख पोती गई है, उसके लिए फिर से आवेदन लगाना चाहिए।
- गौतम कोठारी, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता

पत्रिका : २१ सितम्बर २०१०

चौतरफा घिरे ड्रग ट्रायल वाले डॉक्टर

- विधानसभा, ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त, मानवाधिकार आयोग, एमसीआई, आयकर के साथ ही यूएसएफडीए ने लिया संज्ञान

बहुराष्टरीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवा का मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) करने वाले एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर चौतरफा घिर गए हैं। लोकायुक्त, आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो, मानवाधिकार आयोग, आयकर और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ ही यूनाइटेड स्टेट्स के फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (यूएसएफडीए) ने इसे बेहद गंभीर मानकर जांच शुरू कर दी है। यूएसएफडीए ने इस संबंध में भारत सरकार को पत्र भेजा है। 

'पत्रिकाÓ ने ही ड्रग ट्रायल का खुलासा करके बताया था कि कॉलेज से जुड़े एमवाय अस्पताल और चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में आने वाले रोगियों को अंधेरे में रखकर ट्रायल किए जा रहे हैं। इसके बाद मामला विधानसभा पहुंचा और मध्यप्रदेश सरकार ने कानूनी बंदिश के लिए एक कमेटी का गठन किया। चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुïख सचिव आईएस दाणी की अध्यक्षता में बनी यह कमेटी ट्रायल को नियंत्रित  करने के लिए केंद्र सरकार और दूसरे राज्यों के कानूनी प्रावधानों की पड़ताल कर रही है।

 51 रोगियों पर दुष्प्रभाव
ड्रग ट्रायल से रा'य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 51 रोगियों पर साइड इफेक्ट हुए हैं। ये मरीज पिछले पांच वर्ष में कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में इलाज ले रहे थे। यह जानकारी विधानसभा से जारी एक दस्तावेज में उजागर हुई है। सरकार ने विधानसभा को बताया था कि पांच वर्ष में 2365 रोगियों पर ट्रायल हुआ। इसमें 1644 ब'चे और 721 वयस्क हैं। जिन मरीजों पर दुष्प्रभाव हुए हैं, उनके नाम अभी जाहिर नहीं किए गए हैं। आशंका है कि इनमें से कुछ की मौत हो चुकी है।

मरीज की सेहत और डॉक्टर के एकाउंट पर नजर

यूएसएफडीए
'पत्रिकाÓ के खुलासे के बाद रशिया टीवी ने एमवाय अस्पताल में ट्रायल को लेकर एक खबर अंतरराष्टï्रीय स्तर पर प्रसारित की थी। रिपोर्ट में जिक्र था कि अमेरिकन कंपनियों की शह पर यहां गरीब मरीजों पर प्रयोग हो रहे हैं। इसी पर यूएसएफडीए ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर मध्यप्रदेश में हुए ट्रायल का विस्तृत ब्यौरा मांगा है।

विधानसभा
विधायक पारस सकलेचा, प्रताप ग्रेवाल और प्रद्युम तोमर ने विधानसभा में पांच सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हो रहे ट्रायल को लेकर जो सवाल पूछे थे। उनके जवाब आज तक  सरकार ने नहीं दिए हैं। मानसून सत्र में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के दौरान चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया ने कहा था ट्रायल को काबू करने के लिए सरकार कानून बनाना चाहती है।

ईओडब्ल्यू
स्वास्थ्य सेवा समर्पण सेवा समिति अध्यक्ष डॉ. आनंद राजे की शिकायत पर भोपाल ईओडब्ल्यू ने डॉ. अपूर्व पुराणिक, डॉ. अनिल भराणी, डॉ. सलिल भार्गव, डॉ. अशोक वाजपेयी, डॉ. हेमंत जैन और डॉ. पुष्पा वर्मा के खिलाफ जांच शुरू कर रखी है। सभी डॉक्टरों के एकाउंट की जांच जारी है।

लोकायुक्त
ट्रायल करने वाले डॉक्टरों, एमजीएम मेडिकल कॉलेज प्रबंधन और एथिकल कमेटी के सदस्यों के खिलाफ लोकायुक्त में भी शिकायत हो चुकी है। आरोप है कि सभी ने मिलकर गरीब और अनपढ़ मरीजों की जान जोखिम में डाली है। लोकायुक्त ने शिकायतकर्ता राजेंद्र के. गुप्ता को 14 अक्टूबर को भोपाल बुलाया है।

मानवाधिकार आयोग
'पत्रिकाÓ में प्रकाशित खबरों पर संज्ञान लेकर  मप्र मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन जस्टिस डीएम धर्माधिकारी, सदस्य जस्टिस एके सक्सेना व जस्टिस वीके शुक्ल ने एमवायएच अधीक्षक डॉ. सलिल भार्गव को नोटिस भेजा है। आयोग जानना चाहता है कि मरीजों के अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा।

आयकर
'पत्रिकाÓ में प्रकाशित खबरों के आधार पर आयकर विभाग ने मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत से उन सभी डॉक्टरों की आय का ब्यौरा मांगा है, जो ट्रायल में लिप्त हैं। विभाग की जिज्ञासा इसमें है कि कहीं डॉक्टरों ने बेनामी संपत्ति तो नहीं जुटा ली। 

एमसीआई

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को जो शिकायत भेजी गई थी, उसी पर मप्र के चिकित्सा शिक्षा संचालक से पूरा ब्यौरा मांगा गया है। सभी मेडिकल कॉलेज इसका जवाब तैयार कर रहे हैं। 'पत्रिकाÓ पूर्व में ही यह जानकारी प्रकाशित कर चुका है।



पत्रिका : २१ सितम्बर २०१०

ड्रग ट्रायल का एक ओर कागज ईओडब्ल्यू पहुंचा

मेडिसिन प्रोफेसर डॉ. अनिल भराणी और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. आशीष पटेल द्वारा एक ड्रग ट्रायल के लिए एमजीएम मेडिकल कॉलेज को स्पांसर कंपनी पहुंचाने का दस्तावेज भी ईओडब्ल्यू पहुंच गया है। वहां इसे जांच में भी लिया जा चुका है। सूत्रों के मुताबिक ईओडब्ल्यू इसे गंभीर आर्थिक अपराध मान रहा है, क्योंकि कॉलेज को कंपनी बताने की जानकारी कॉलेज प्रबंधन को नहीं है। 'पत्रिकाÓ ने ही इसका खुलासा किया है।


एसबीआई सुने चार अफसरों का केस
स्टेट बैंक ऑफ इंदौर के चार अधिकारियों की याचिका का हाईकोर्ट ने निराकरण कर दिया। कोर्ट ने आदेश दिया है कि चूंकि अब इंदौर बैंक का विलय स्टेट ऑफ इंडिया में हो चुका है, इसलिए उनकी बात वहीं सुनी जाना चाहिए। चारों अधिकारियों का इंदौर बैंक ने तबादला कर दिया था। इसे ही चुनौती देने के लिए वे हाईकोर्ट गए थे। सिंगल बैंच ने इसे खारिज कर दिया था और मामला युगलपीठ में लंबित था।


 
पत्रिका : ०३ सितम्बर २०१०