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रविवार, जुलाई 25, 2010

इलाज के नाम पर करोड़ों का घालमेल

ड्रग ट्रायल का गोरखधंधा: ईओडब्ल्यू पहुंचा मामला


ड्रग ट्रायल का गोरखधंधा अब आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) पहुंच गया है। डॉक्टरों से ही जुड़े एक संगठन ने शिकायत की है कि गरीब मरीजों को निशाना बनाकर एमजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर से जुड़े अस्पतालों में ऐसी दवाइयों का आजमाइश हो रही है, जो बाजार में उतरी ही नहीं है। राज्य सरकार की जानकारी के बगैर इलाज के नाम पर डॉक्टरों ने करोड़ों का घालमेल किया है। इसकी विस्तृत जांच करके भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और ड्रग एंड कास्मेटिक अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाए।

 स्वास्थ्य समर्पण सेवा संगठन द्वारा भोपाल स्थित ईओडब्ल्यू मुख्यालय में शिकायत की गई है। संगठन प्रमुख डॉ. आनंद राजे ने बताया ट्रायल के नाम पर काला धन राज्य में आ रहा है। ट्रायल करने वाले डॉक्टरों और उनके परिजन के बैंक खातों की जांच की जाए, तो हकीकत उजागर हो सकती है। चूंकि राज्य में ईओडब्ल्यू ही आर्थिक अपराध से जुड़े मामले सुलझाता है, इसलिए शिकायत की।

जीने का अधिकार संकट में
 स्वदेशी जागरण मंच ने शुरू किया विरोध


ड्रग ट्रायल करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ स्वदेशी जागरण मंच ने बुधवार को विरोध शुरू कर दिया। मंच ने ट्रायल को जीवन जीने के अधिकार की राह में अड़चन बताया है। इस कार्य में लिप्त डॉक्टरों के विरूद्ध एक सप्ताह में कार्रवाई नहीं होने की स्थिति में संगठन चरणबद्ध आंदोलन करेगा।

मंच के कार्यकर्ताओं ने अपर आयुक्त गौतमसिंह को राष्टï्रपति एवं राज्यपाल के नाम पांच बिंदुओं का ज्ञापन सौंपा। महानगर संयोजक सुरेश बिजौलिया, विभाग संयोजक बलराम वर्मा एवं महानगर सहसंयोजक मनोज लोढ़े ने बताया मेडिकल हब की शक्ल लेते इंदौर में कुछ डॉक्टर मनुष्य के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। विदेशी कंपनियों की आड़ में मरीज पर जानलेवा प्रयोग किए जा रहे हैं। बारिकी से पूरे मामले की जांच की जाए तो सारा मामला सामने आ सकता है। केंद्र सरकार को चाहिए क्विंटल्स व बायोटेक नाम की स्पांसर कंपनियों को तत्काल प्रतिबंधित करे और राज्य सरकार को चाहिए कि वह तत्काल एक नियामक आयोग गठन करे जो मामले की पड़ताल कर सके। 


अब खंगाल रहे गाइडलाइन
- मरीजों पर प्रयोग करने से पहले तो नहीं दिया ध्यान
- पलट रहे आईसीएमआर, एम्स के नियमों की किताबें



पांच वर्षों से अस्पताल में आने वाले रोगियों पर दवा आजमाइश (ड्रग ट्रायल) करने वाले डॉक्टर अब उस नैतिक गाइडलाइन की तलाश में है, जो उनका बचाव कर सके। इसके लिए वे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की उन किताबों के पन्ने पलट रहे हैं जिसमें ड्रग ट्रायल के कायदे तय किए गए हैं।

'पत्रिकाÓ द्वारा ड्रग ट्रायल के गोरखधंधे का खुलासा करने और सरदारपुर, रतलाम व ग्वालियर के विधायकों द्वारा विधानसभा में मामला उठाने के बाद डॉक्टरों को नियमों की याद आई है। अब तक वे क्विंटल्स और बायोटेक जैसी स्पांसर कंपनियों द्वारा तय दिशा में काम करते थे। उन्होंने कभी आईसीएमआर के उन नियमों की परवाह नहीं की जो मनुष्य को प्रयोगशाला बनाने से बचाते हैं।

दो धारी तलवार!
आईसीएमआर के मापदंड दो धारी तलवार की तरह हैं। ट्रायल करने वाले डॉक्टर इसमें अपने बचाव की बातें ढूंढ रहे हैं, जबकि चिकित्सा शिक्षा विभाग डॉक्टरों को कटघरे में खड़े करने के तथ्य।


News in Patrika on 22th July 2010

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