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बुधवार, जुलाई 21, 2010

मरीजों के साथ जानलेवा धोखाधड़ी

 - ड्रग ट्रायल का गोरखधंधा
- सहमति पत्र में नहीं होता दवा प्रयोग का जिक्र

एमजीएम मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पतालों में चल रहे ड्रग ट्रायल के गोरखधंधे में यहां आने वाले रोगियों के साथ जानलेवा धोखाधड़ी की जा रही है। ट्रायल में जुड़े डॉक्टर मरीज से जिस सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाते हैं, उसमें दवा प्रयोग का जिक्र ही नहीं होता है। मरीज बस यही जानता है कि डॉक्टर साहब कोई पढ़ाई कर रहे हैं।
ड्रग ट्रायल में लिप्त डॉक्टरों का तर्क रहा है कि मरीज को भरोसे में लेकर ही प्रयोग शुरू करते हैं, लेकिन उनके इस दावे की पोल सूचना का अधिकार ने खोल दी। 'पत्रिकाÓ के मौजूद दस्तावेजों में स्पष्ट है कि रोगी से जिन पांच बिंदुओं पर सहमति ली जाती है, उनमें ड्रग ट्रायल शब्द ही नहीं रहता है।


सहमति पत्र के पांच बिंदु
- पुष्टि करता हूं सूचना पत्र पढ़ लिया है।
- भागीदारी स्वैच्छिक है और ïकानूनी बंधन में नहीं हूं।
- मेरी जानकारी जगजाहिर नहीं की जाएगी।
- अध्ययन की जानकारी पर अधिकार नहीं जताऊंगा।
- अध्ययन में भाग लेने के लिए सहमत हूं।


एथिकल कमेटी भी अंधेरे (?) में

'जानकारी नहीं है कि सहमति पत्र में ड्रग ट्रायल का जिक्र नहीं है। हमें इस पर ध्यान देना था। मरीज को पता होना अत्यंत आवश्यक है कि उस पर प्रयोग हो रहा है।Ó
- कुट्टी मेनन, पर्यावरणविद् एवं सदस्य एथिकल कमेटी

'ट्रायल के तय मापदंडों का पालन होना चाहिए। मैं पूछूंगा कि सहमति पत्र में ट्रायल का जिक्र क्यों नहीं होता? हमें दवा और उसके असर की जानकारी देते हैं, लेकिन राशि के बारे में कुछ नहीं बताया जाता है।Ó
- डॉ. जयंतीलाल भंडारी, अर्थशास्त्री एवं सदस्य एथिकल कमेटी


एथिकल कमेटी की बुनावट

अध्यक्ष -
प्रो. केडी भार्गव, रिटायर्ड प्रोफेसर, एमजीएम मेडिकल कॉलेज

सचिव -
प्रो. अनिल भराणी, प्रोफेसर, मेडिसीन विभाग

न्याय व सामाजिक क्षेत्र के प्रतिनिधि -
रिटायर्ड जस्टिस पीडी मूल्ये, पर्यावरणविद कुट्टी मेनन, अर्थशास्त्री डॉ. जयंतीलाल भंडारी, एडवोकेट योगेश मित्तल

साइंटिफिक कमेटी- 
इसमें कॉलेज के करीब 20 प्रोफेसर 


15 जुलाई को पत्रिका में प्रकाशित

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