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मंगलवार, अगस्त 31, 2010

ड्रग ट्रायल के लिए मेडिकल कॉलेज को बता दिया स्पांसर कंपनी

एमवाय अस्पताल में हायरपरटेंशन के रोगियों पर हो रहा प्रयोग


बहुराष्टरीय कंपनियों द्वारा विकसित दवा के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) के लिए एमवाय अस्पताल के दो डॉक्टरों ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज को स्पांसर कंपनी बना दिया। ये डॉक्टर किसी दवा कंपनी के लिए अस्पताल में आने वाले हायपर टेंशन के रोगियों पर टेडलाफिल नामक दवा का प्रयोग कर रहे हैं। कान खड़े करने वाला तथ्य यह है कि कॉलेज को पता ही नहीं है कि उसे स्पांसर बना दिया गया है।

मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. अनिल भराणी और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. आशीष पटेल ने 1 जुलाई 2010 को केंद्र सरकार के क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री इंडिया (सीटीआरआई) में प्लोमोनरी हायपर टेंशन के 60 मरीजों पर प्रयोग के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया। डॉ. भराणी प्रमुख जबकि डॉ. पटेल सहयोगी इन्वेस्टिगेटर हैं। दोनों डॉक्टर रोगियों को टेडलाफिल नाम की दवा देकर उसका असर जांच रहे हैं।

किसके पास रहेंगे वित्तीय अधिकार?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक स्पांसर व्यक्ति या संस्था ट्रायल पर होने वाले समस्त खर्च के लिए जवाबदेह होती है। ट्रायल के बाद दवा को बाजार में उतारने के पहले उसके वित्तीय अधिकार स्पांसर कंपनी ही बेचती है। दवा उत्पाद से जुड़े जानकारों के मुताबिक आम तौर पर किसी दवा के अधिकार करोड़ों में बेचे जाते हैं। अहम सवाल यही है कि इस ट्रायल के नतीजों के वित्तीय अधिकार किसके पास रहेंगें और उन्हें कौन बेचेगा?

आर्थिक अपराध की श्रेणी में शामिल
किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा अपने संस्थान को कंपनी की तौर पर पेश करके कहीं से रुपए कमाना आर्थिक अपराध की श्रेणी में आता है। सरकार यदि मामले की तह तक जाए, तो यह बड़ी आर्थिक गड़बड़ी साबित होगा।


सूचना का अधिकार में भी नहीं दे रहे जानकारी
इस संबंध में संबंधित डॉक्टरों ने चर्चा करना चाही तो उन्होंने बात करने से मना कर दिया। डॉ. पटेल चाहते थे कि इस संबंध में कोई भी जानकारी लिखित में ही दी जा सकती है। 'पत्रिकाÓ ने सूचना का अधिकार का इस्तेमाल किया गया, तो मेडिसिन विभाग ने लिखित में दिया कि गोपनीयता की शर्त के कारण यह जानकारी नहीं दी जा सकती है।


मर्ज और दवा दोनों ही खतरनाक

मर्ज: रूक जाती है फेफड़े की रक्तवाहिनी
दिल से खून को पूरे शरीर में ले जाने वाली रक्त नलिकाएं पल्मोनरी वैसल्स (धमनियां) कहलाती हैं। फेफड़ों में मौजूद धमनियों में जब रूकावट आती है तो ब्लड प्रेशर बढ़ता है और दिल के दाएं हिस्से में तेज दर्द उठता है। कभी कभी इसे दिल की धड़कन हमेशा के लिए रूक जाती है। इसे ही प्लमोनरी हायरपर टेंशन (पीएचटी) कहते हैं।

दवा: नपुंसक बना सकती है टेडलाफिल 
- पुरुष जननांग छह घंटे तक उत्तेजित अवस्था में आ सकता है। इससे ताजिंदगी नपुंसक होने का खतरा भी रहता है।
- 0.1 प्रतिशत मरीजों में रंग पहचानने की शक्ति समाप्त हो जाती है। वे नीले-हरे रंग में अंतर नहीं कर पाते। 
- चेहरे पर सूजन, शरीर में झुनझुनी, थकान और दर्द हो सकता है।
- ब्लड प्रेशर में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव, अचानक हार्ट अटैक, बेहोशी, सांस की गति बढऩा भी संभव है।
- पांच प्रतिशत रोगियों में अत्यधिक पीठ या कमर का दर्द होता है। 


मैं कुछ नहीं बता सकता
क्या आप टेडलाफिल के ड्रग ट्रायल की जानकारी देंगे?
मौखिक कुछ नहीं दूंगा, लिखित में मांगे।
परंतु सीटीआरआई ने तो आपको जनता के सवालों का जवाब देने के लिए जिम्मेदार बताया है?
वह सही है, लेकिन मैं आपको मौखिक कुछ नहीं बता सकता।
मुझे सिर्फ इतना बता दें कि क्या ट्रायल के लिए कॉलेज को स्पांसर बनाया गया है?
कहना, मैं आपको कुछ नहीं बता सकता।
(डॉ. आशीष पटेल से  चर्चा)

'किसी को तो बताना ही था स्पांसरÓ 
टेडलाफिल दवा के ट्रायल में मेडिकल कॉलेज को स्पांसर क्यों बनाया गया?
सीटीआरआई में किसी को स्पांसर बताना जरूरी था, इसलिए ऐसा कर दिया।
इसमें वित्तीय मदद कहां से मिल रही है?
उसकी जरूरत ही नहीं है। दूसरे ट्रायल चल रहे हैं, तो यह भी साथ में हो रहा है। इससे जूनियर्स को सीखने को मिलेगा।
वित्तीय अधिकार किसे बेचे जाएंगे?
इसकी कोई जरूरत ही नहीं पड़ेगी। एक कंपनी ने कहा और हम ट्रायल कर रहे हैं, इसमें वित्तीय अधिकार की बात ही कहां आई?
(डॉ. अनिल भराणी से चर्चा)


मुझे इस मामले की कोई जानकारी नहीं है। मैं इसकी जांच करूंगा और फिर ही कोई कोई टिप्पणी कर सकूंगा।
- डॉ. एमके सारस्वत, डीन, एमजीएम मेडिकल कॉलेज

पत्रिका: ३० अगस्त २०१० 

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