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रविवार, अगस्त 01, 2010

शोध नहीं है ड्रग ट्रायल


एमसीआई के पत्र का साफ संदेश


ड्रग ट्रायल शोध है या नहीं? इस बहस का जवाब चिकित्सा शिक्षा से जुड़ी सर्वोच्च संस्था मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के एक नियम में मिलता है। एमसीआई के मुताबिक जब ड्रग ट्रायल के परिणाम भारत में प्रकाशित किए जा सकें, तभी यह शोध है। यदि दवा कंपनी ऐसा नहीं करने देती है, तो ट्रायल किया ही नहीं जाना चाहिए।

एमसीआई ने इंडियन मेडिकल काउंसिल नियम 2000 में संशोधन करके यह बात गत वर्ष ही स्पष्ट की है। दरअसल, भारत सरकार ने ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 में वर्ष 2005 में संशोधन किया तो देशभर में डॉक्टरों ने शोध के नाम पर ड्रग ट्रायल शुरू कर दिए, परंतु इसके परिणामों को छापने की अनुमति किसी को नहीं मिली। डॉक्टर से समझौता करने वाली स्पांसर कंपनी ने ड्रग ट्रायल के परिणामों को प्रकाशित करने का अधिकार स्वयं के पास सुरक्षित रखती हैं। एमसीआई ने इसी बंधन से ट्रायल को मुक्त रखने के लिए नए नियम जारी किए।

आईसीएमआर के ट्रायल शोध
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) देशभर में जो भी ट्रायल करवाती है, उन्हें चिकित्सा जगत में शोध का दर्जा दिया गया है। पोलियो की दवा, स्वाइन फ्लू का टीका ऐसे ही ट्रायल हैं। इनके नतीजों को भारत सरकार द्वारा प्रकाशित किया जाता है और ये देश में चिकित्सा विज्ञान की प्रगति में सहायक साबित होते हैं। बहुराष्टï्रीय कंपनियों द्वारा विकसित दवाइयों के परीक्षण के नतीजों पर कंपनी का अधिकार रहता है।




जवाब भी तैयार नहीं कर पाई सरकार
 बीस दिन में भी नहीं जुटी जानकारी
 तीनों विधायकों के प्रश्न अब तक बेजवाब


बहुराष्टï्रीय कंपनियों द्वारा विकसित दवा और टीकों का मरीजों पर परीक्षण (ड्रग ट्रायल) मामले में भले ही सरकार ने कायदे कानून बनाने की घोषणा कर दी हो, लेकिन अभी भी तीन विधायकों के प्रश्नों के जवाब तैयार नहीं हुए हैं। इन विधायकों ने सरकार से सरकारी मेडिकल कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में ड्रग ट्रायल की जानकारी चाही थी।

सरदारपुर के विधायक प्रताप ग्रेवाल, रतलाम के पारस सकलेचा और ग्वालियर के प्रदुम्म तोमर ने तारांकित प्रश्न पूछे थे। बीस दिन पहले (12 जुलाई) को ग्रेवाल का सवाल सभी मेडिकल कॉलेजों में पहुंचा था। सदन ने ग्रेवाल को सूचना दी थी कि 23 जुलाई को जवाब दे दिया जाएगा, परंतु जब उन्होंने मांगा तो कहा गया जानकारी जुटाई जा रही है। ऐसा ही जवाब सकलेचा और तोमर को मिला।

प्रक्रिया पर सवालिया निशान
विधानसभा में पूछे जाने वाले सवाल के जवाब तय समय सीमा में देने जिम्मेदारी सरकारी अमले की है। मीडिया में जब मामला आ जाए, तो और भी सक्रियता के साथ जानकारी तैयार की जाना चाहिए, परंतु इस मसले में ऐसा नहीं किया गया।

अनियमितता दबाने की कोशिश तो नहीं
ड्रग ट्रायल में बहुत अधिक राशि का लेन-देन होता है। एक मरीज के लिए डॉक्टर को औसतन दो से पांच लाख रुपए मिलते हैं। माना जा रहा है कि इसी पर परदा डालने के लिए जानकारी रोकी गई है।

इन सवालों में अटकी सरकार
- ड्रग ट्रायल कराने वाली कंपनियों से किस डॉक्टर को कितनी राशि मिली?
- जिन मरीजों पर ट्रायल किया गया, क्या उन्हें इसकी जानकारी दी गई? यदि हां, तो नाम बताएं।
- किसी भी राशि के लेनदेन के लिए किससे इजाजत ली गई?
- पांच वर्ष में कितने डॉक्टर विदेश गए और उन्हें किस कंपनी ने भेजा? क्या वे अनुमति लेकर गए?


News in PATRIKA on 02 Aug 2010

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