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बुधवार, अगस्त 25, 2010

मध्यप्रदेश में व्हीसल ब्लोअर पर सरकारी तंत्र का हमला

Dr. Aanad Rai


व्हीसल ब्लोअर यानी भ्रष्टाचार या गड़बडिय़ों को देखकर सरकार को सचेत करने वाला बंदा। लुप्त होती जा रही 'व्हीसल ब्लोअरÓ की इस प्रजाति को बचाने के लिए भारत सरकार संजिदा दिखती है और यही वजह है कि एक ऐसे कानून का मसौदा तैयार किया जा चुका है जिससे यह 'कौमÓ संरक्षित रहेगी। परंतु, मध्यप्रदेश में यह कौम खतरे में है। 'बीमारूÓ की श्रेणी से उबर नहीं पा रहा मध्यप्रदेश 'संगठित और सरकारी भ्रष्टाचारÓ की गिरफ्त में है। ब्यूरोक्रेट जोशी दंपत्ति के पास से मिली अरबों की चल-अचल संपत्ति से इस धारणा पर मुहर भी लगी है। बावजूद इसके राज्य में 'सचेतकÓ को सुरक्षित रखने की कोई कोशिश नजर नहीं आती।

ताजा उदाहरण, एक सरकारी डॉक्टर का है, जिसका नाम आनंद राय है। वे 21 अगस्त की रात तक इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग में सिनीयर रेसीडेंट थे। उस रात एक बजे तक चिकित्सा शिक्षा विभाग भोपाल और कॉलेज डीन के कक्ष में समानांतर बैठकें होती रहीं। आखिर में हुआ कि राज्य में जारी जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल को उकसाने के आरोप में डॉ. राय को बर्खास्त कर दिया जाए। आरोप का आधार एक खबर को बनाया गया, जिसमें डॉ. राय ने इंदौर जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन का संरक्षक होने के नाते कहा था 'मैं जूडॉ की मांगों का नैतिक समर्थन करता हूं।Ó 

सवाल है, फिर डॉ. राय को बगैर नोटिस दिए, देर रात तक बैठक करके ताबड़तोड़ बाहर क्यों किया गया? क्या  चिकित्सा शिक्षा विभाग या कॉलेज प्रबंधन की डॉ. राय से जाति दुश्मनी है? क्या डॉ. राय के कहने भर से राज्यभर के जूनियर डॉक्टर हड़ताल कर रहे हैं? क्या डॉ. राय का एक बयान ही उनकी बर्खास्तगी का कारण है या बर्खास्तगी की पृष्ठभूमि पहले से ही तैयार थी ? क्या डॉ. राय व्हिसल ब्लोअर हैं, इसलिए उन्हें सिस्टम से बाहर कर दिया गया?

सवालों का जवाब तलाशने के लिए फ्लैश बैक में जाना होगा। 15 अक्टूबर 2007 को मप्र हाईकोर्ट जस्टिस आरएस झा ने चिकित्सा शिक्षा विभाग को अंतरिम आदेश दिया कि एमजीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग में सिनीयर रेसीडेंट के पद पर भर्ती के लिए डॉ. आनंद राय की अर्जी भी मंजूर की जाए। इसके बाद ही उन्हें राहत मिली। पहले विभाग का तर्क था कि डॉ. राय ने पीजी डिप्लोमा किया है, इसलिए उन्हें पात्रता नहीं है। डॉ. राय ने भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) के दस्तावेजों के आधार पर कोर्ट में केस दायर किया था। बहरहाल, साक्षात्कार में योग्यता के आधार पर उन्हें चयनित कर लिया गया। इसके बाद यह कहकर नियुक्ति को रोक दिया गया कि याचिका हाईकोर्ट में खत्म नहीं हुई है। डॉ. राय फिर से जबलपुर हाईकोर्ट की शरण में गए। जस्टिस दीपक मिश्रा व आरके गुप्ता की युगलपीठ ने आदेश दिया कि डॉ. राय की याचिका समाप्त हो गई है। मजबूरन, विभाग को 'मुंह बिगाड़करÓ डॉ. राय को नौकरी पर रखा।

डॉ. राय वर्ष 2005 से 07 तक पीजी छात्र थे और तब जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन इंदौर के अध्यक्ष, प्रदेश के महासचिव और प्रवक्ता रहे। उनके दौर में भी हड़तालें हुई और वे सरकार के निशाने पर आए गए। सीनियर रेसीडेंट बनने के बाद उन्हें सिस्टम की खामियां महसूस हुई। उन्हें लगा कि मेडिकल कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में हड़ताल के दौरान भी व्यवस्थाएं माकूल रखने के लिए एमसीआई मापदंड के मुताबिक हर कॉलेज में सीनियर व जूनियर रेसीडेंट की पर्याप्त भर्ती की जाना चाहिए। इसे लेकर उन्होंने 'सूचना का अधिकारÓ का हथियार अपनाया और केंद्र व राज्य सरकार से हजारों जानकारियां बटौरी। इस दौरान ही उनकी विभाग के संचालक, प्रमुख सचिव और मंत्री से वैचारिक टकराहट शुरू हुई। उनके तर्कों को कोई मानने को तैयार नहीं हुआ तो वे जबलपुर हाईकोर्ट पहुंच गए। वहां 6302/2010 नंबर से एक याचिका दायर की, जिसमें रेसीडेंट डॉक्टरों की संख्या, अधिकारों और नियमित नियुक्ति के मामले उठाए गए हैं। याचिका में हाईकोर्ट से दो बार विभागीय अधिकारियों को दो बार नोटिस भी हो भी हो चुके हैं। यह और बात है कि सरकार ने अब तक जवाब नहीं दिया है।

तीन वर्ष में ही डॉ. राय एक व्हिसल ब्लोअर के रूप में उभरे हैं। वे अब तक चिकित्सा शिक्षा विभाग के डॉक्टरों की चल-अचल संपत्ति, राज्य के मेडिकल कॉलेजों की एमसीआई मान्यता, राज्य में स्वास्थ्य नीति की कमी, मेडिकल यूनिवर्सिटी की गैरमौजूदगी के साथ ही सीनियर डॉक्टरों की प्रायवेट प्रेक्टिस, ड्यूटी ओवर्स में डॉक्टरों का ड्यूटी से गायब रहना, सरकारी अस्पतालों में गरीब मरीजों की अनदेखी, मरीजों को प्रायवेट लेबोरेटरी व अस्पतालों में रैफर करना, ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में पसरा भ्रष्टाचार जैसे कई मसले उठा चुके हैं। उनका हथियार सूचना का अधिकार रहा है।

जुलाई 2010 में डॉ. आनंद राय ने बहुराष्टï्रीय कंपनियों द्वारा विकसित दवाइयों के मरीजों पर परीक्षण (ड्रग ट्रायल) का खुलासा किया। इसके लिए उन्होंने मीडिया और विधायकों को जरिया बनाया। मीडिया ने खबरें प्रकाशित की और विधायकों ने विधानसभा में सरकार से सवाल पूछे। करोड़ों अरबों के ड्रग ट्रायल के खेल की पोल खुलने से पूरे राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं और डॉक्टरों के 'नोबलÓ चरित्र पर प्रश्नचिह्न उठ खड़ा हुआ। सरकार अनुत्तरित रही और राज्य के आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो व लोकायुक्त ने ट्रायल में लिप्त कुछ नामचीन डॉक्टरों की जांच शुरू कर दी। जैसा कि राज्य में होता आया है, सरकार ने लीपापोती शुरू कर दी। मरीजों और सरकार की आंखों में साफ-साफ धूल छोंकने वाले डॉक्टरों को 'शोधार्थीÓ (रिसर्चर) बताया गया। हालांकि, सरकार का यह कृत्य जनता को हजम नहीं हो रहा है। डॉ. राय स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति नाम के एक संगठन से भी जुड़े हैं। इसी संगठन के जरिए उन्होंने 'ट्रायलÓ मुद्दे को उठाया है।

ड्रग ट्रायल के बाद से ही पूरा सरकारी तंत्र डॉ. राय को 'निपटानेÓ की जोड़तोड़ में था। अगस्त में शुरू हुई जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल में तंत्र कामयाब हो गया। डॉ. राय इंदौर जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन के संरक्षक हैं और इसी नाते हड़ताल के दौरान उन्होंने एक-दो बार मीडिया में कहा था 'मैं जूडॉ की मांगों का नैतिक समर्थन करता हूं।Ó बस फिर क्या था, इस बयान को आधार बनाकर उन्हें 'बाहरÓ का रास्ता दिखा दिया। हद तो यह हो गई कि उनकी बर्खास्तगी को एक विज्ञापन के जरिए प्रमुख अखबारों में प्रकाशित करवाया गया, जिसमें संभवत: कुछ लाख रुपए खर्च हुए होंगे। 

 प्राकृतिक न्याय के तहत डॉ. राय ने फिलहाल कॉलेज को एक नोटिस दिया है, निश्चत तौर पर इसका उन्हें इसका नकारात्मक जवाब मिलेगा। इसके बाद ही वे कोर्ट की दहलीज पर जाकर न्याय मांग सकते हैं। खुशी इस बात की है कि डॉ. राय निराश नहीं हुए हैं। उनका कहना है मुझे सिर्फ और सिर्फ ड्रग ट्रायल खुलासे के कारण हटाया गया है। सरकार संदेश देना चाहती है कि सरकारी तंत्र के भीतर जो व्यक्ति 'आवाजÓ उठाऐगा, उसे इसी तरह दबा दिया जाएगा। मैं इससे घबराने वाला नहीं हूं, न्याय पाकर ही दम लूंगा।  

इस जिंदा उदाहरण से साबित होता है ...
मध्यप्रदेश में व्हीसल ब्लोअर सरकारी तंत्र के निशाने पर हैं।

1 टिप्पणी:

  1. EVM के व्हीसल ब्लोअर सरकारी तंत्र के निशाने पर


    वोटिंग मशीन की तकीनीकी खामियों और हैकिंग की संभावना के पक्के सुबूत दुनिया के सामने रखने वाले कंप्यूटर वैज्ञानिक हरि प्रसाद को बिना कारण गिरफ्तार कर लिया गया है, और उनसे कड़ी पूछताछ जारी है. फ़िलहाल उनपर वैधानिक रूप से कोई मामला नहीं है, गिरफ़्तारी का आधार यही है की वे यह बताने तैयार नहीं है की मशीन उन्हें किसने दी.

    उन्हें उनके हैदराबाद स्थित आवास से उठाकर, मुंबई ले जाया गया. विरोध जताने पर अधिकारीयों ने इतना ही कहा की 'हमारे हाथ बंधे हुए हैं, हमपर ऊपर से दबाव हैं. '

    http://sify.com/news/unsafe-electronic-voting-machines-shooting-the-messenger-comment-news-national-kiyp4pihhie.html

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