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सोमवार, अगस्त 23, 2010

व्हिसल ब्लोअर की सफाई ?

चिन्मय मिश्र 
 
ये  किस तरह का समय है, जब पेड़ों के बारे में बात करना लगभग अपराध है।

मध्यप्रदेश में चल रही जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल की आड़ में डॉ. आनंद राय की बर्खास्तगी उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए चेतावनी है, जो प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। डॉ. राय ने इंदौर के महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय व महाराजा यशवन्त राव अस्पताल में बिना अनुमति के बहुराष्ट्रीय दवाई कंपनियों के लिए किए जा रहे ड्रग ट्रायल का पर्दाफाश किया था। उनकी बर्खास्तगी के आदेश को मीडिया के लिए भी एक चेतावनी माना जा सकता है। क्योंकि डॉ. राय द्वारा किए गए रहस्योद्घाटन को अंतत: मीडिया ने ही व्यापक समाज तक पहुंचाया था। इसलिए यह आदेश मीडिया को भी उसकी हैसियत बताने का तरीका है कि वे भले ही समाज हित के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दें, लेकिन प्रशासन वही करेगा जो कि उसके स्वयं के हित में है।

इस आदेश का अध्ययन इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि हड़ताल की वजह से जहां अन्य जूनियर डॉक्टर्स को 15 दिनों के लिए निलंबित किया गया है, वहीं डॉ. राय के अनुसार उन्होंने हड़ताल की अवधि में भी ओपीडी और इमरजेंसी विभाग में अपनी सेवाएं दी थी। इसके बावजूद सूत्रों का कहना है कि उन्हें 'बेहतरीÓ के लिए बर्खास्त किया गया है। सवाल उठता है कि यह किसकी बेहतरी के लिए किया गया है? हड़ताल के दौरान भी अपना काम करना क्या 'बेहतरी  की श्रेणी में नहीं आता? दरअसल बात बहुत दूर तक जा रही है। एक ओर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली तो चर्चा में थी ही, वहीं दूसरी ओर मई में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा चार बहुराष्ट्रीय दवाई कंपनियों  नोवारिटस, बीएमएस, इलिलिली और फाइजर के सर्वोच्च अधिकारियों के साथ बैठक में भारतीय दवाई निर्माताओं का मानना है कि देश में निर्मित 'जेनेरिकÓ दवाइयों के कारण भारत व तीसरी दुनिया के देशों और कुछ हद तक विकसित देशों में भी दवाई की कीमतें काबू में रहती हैं। यदि बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बात मान ली जाती है, तो आम आदमी को जीवनरक्षक दवाइयों के लिए काफी अधिक मूल्य देना होगा।

इसी दौरान मंदसौर स्थित पशुपतिनाथ मंदिर के लिए सरकारी तौर पर चंदा इकठ्ठा  करना भी गंभीर मामला है। कहा जा रहा है कि पिछले वर्ष तत्कालीन कलेक्टर ने 'मनोकामना अभिषेक योजना के माध्यम से 4.5 करोड़ रुपये इकठ्ठा किए थे और इस बार तो जिलेभर में  मनोकामना अभिषेक वर्ष २०१० समारोहित कर पांच करोड़ रुपये इकठ्ठा करने की योजना है। इस हेतु सरकारी अधिकारियों को नोडल ऑफिसर नियुक्त कर दिया गया है और रसीद कट्टे छपवाकर 'टारगेटÓ तय कर वितरित कर दिए गए हैं।

सरसरी तौर पर देखने में उक्त दोनों मामलों में कोई समानता नजर नहीं आएगी, परन्तु गहराई से देखने पर समझ में आता है कि दोनों मामलों में शासन-प्रशासन अपनी तरह से मूल्य व मानक तय कर रहा है। 'व्हिसल ब्लोअरÓ बिल को अभी कैबिनेट से ही सहमति मिली है, अतएव प्रशासन में रहकर भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की अभी खैर नहीं है। इस अधिनियम के अभाव में सूचना का अधिकार कानून को लेकर अमित जेठवा जैसे भ्रष्टाचार उजागर करने वालों का हश्र हम देख चुके हैं।

सरकारें भी चाहती हैं कि व्हिसल ब्लोअर अधिनियम पारित होने से पहले जितनी 'सफाईÓ संभव हो कर ली जाए परन्तु यह विध्वंसकारी परिपाटी है जिससे सार्वजनिक क्षेत्र को बचाया जाना चाहिए। दहशत फैलाने की कोशिशों के समक्ष चुप बैठना भी समझदारी नहीं है।


चिन्मय मिश्र  सामाजिक कार्यकर्ता  हैं.
पत्रिका : २३ अगस्त २०१०

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