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रविवार, अगस्त 08, 2010

ड्रग ट्रायल से ३ साल में १५१९ मौतें

  केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री ने लोकसभा में कबूली सच्चाई


 बहुराष्टरीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवाइयों के मरीजों पर परीक्षण (ड्रग ट्रायल) में सरकार की अनदेखी और डॉक्टरों की मनमानी का मुद्दा लोकसभ  को लेकर तमाम तरह के विवादों और ना नुकुर के बावजूद सरकार ने मान लिया है कि औषधियों के परीक्षण में पिछले तीन साल में करीब १५१९ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। 

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राच्य मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने शुक्रवार को लोकसभा में बताया कि दवाइयों की नैदानिक जांच यानी ड्रग ट्रायल के दौरान वर्ष २००७ में १३२, २००८ में २८८, २००९ में ६३७ और जून २०१० तक ४६२ लोगों की मौत हुई है। हालांकि इन लोगों की मौत के कई और भी कारण हो सक ते हैं। गंभीर बीमारियों से पीडि़त मरीजों पर दवाओं का प्रतिकूल प्रभाव च्यादा घातक भी हो सकता है।

उल्लेखनीय है कि पत्रिका ने इंदौर में मरीजों को धोखे में रखकर ड्रग ट्रायल करने वाले रैकेट का भंडाफोड़ किया था, इसके बाद देश भर में इसको लेकर गंभीर बहस छिड़ गई। त्रिवेदी के के मुताबिक देश में ड्रग ट्रायल की अनुमति चाहने वाली दवा निर्माता कंपनियों और ट्रायल संगठनों की बहुत बड़ी तादाद है। 

 केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के पास लंबित आवेदनों में ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन, जॉनसन एंड जॉनसन , एमएसडी, एलीलिली, नोवाॢटस, ब्रिस्टल माइर्स स्क्लिब्स , बेयर हेल्थकेयर, एस्ट्र जेनेका, फाइजर जैसी दवा कंपनियां और क्विंटाइल्स, आईसीओएन, जीवीके बायो, सिरो क्लिनफार्म, पीआरए इंटरनेशनल , पीपीडी, कोवान्स और ओमनीकेयर जैसे नैदानिक अनुसंधान संगठन शामिल हैं।  
 




News in Patrika on 7th Aug 2010

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