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शुक्रवार, दिसंबर 31, 2010

नए ड्रग ट्रायल पर रोक

सरकारी और निजी अस्पतालों में अब मरीज नहीं बनेंगे चूहे

बहुराष्टरीय कंपनियों द्वारा विकसित दवाइयों के मरीजों पर प्रयोग यानी ड्रग ट्रायल को आखिर रा'य सरकार ने गलत मान ही लिया। सरकार ने आदेश दिया है किअब सरकारी और निजी अस्पतालों में कोई ट्रायल नहीं कि या जाएगा। साफ है कि अब इलाज के लिए जाने वाले रोगी पर चूहा समझकर प्रयोग नहीं किया जा सकेगा। हांलाकि, दवा कंपनियों के साथ हो चुके अनुबंधों के चलते पहले से जारी ट्रायल को फिलहाल नहीं रोका गया है। 
ड्रग ट्रायल के संबंध में कानून बनाने के लिए चिकित्सा शिक्षा प्रमुख सचिव आईएस दाणी की अध्यक्षता में गठित रा'य स्तरीय कमेटी ने ड्रग ट्रायल पर रोक लगाने की सिफारिश की थी। शुक्रवार को सरकार ने इसे मंजूर कर लिया। अब सरकारी, निजी मेडिकल कॉलेजों, डेंटल कॉलेजों, स्वास्थ्य विभाग के तहत आने वाले सभी अस्पतालों और भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के अधीनस्थ सरकारी अस्पतालों में ट्रायल नहीं किए जाएंगें। 

पत्रिका खुलासे के पहले सरकार भी नहीं जानती थी ट्रायल  (ईपीएस के साथ जाएगा यह बॉक्स)
ड्रग ट्रायल के गोरखधंधे का पहला खुलासा पत्रिका ने 14 जुलाई को कि या था। इसके पहले सरकार को भी पता नहीं था कि दवा कंपनियों से फायदा कमाने के लिए रा'य के सरकारी और निजी अस्पतालों के कुछ डॉक्टर रोगियों को चूहे की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। पत्रिका ने तथ्यात्मक खुलासा करते हुए अब तक पचास से अधिक खबरें प्रकाशित की हैं। इसी का असर है कि सरकार ने पहले कानून बनाने के लिए कमर कसी और अब ट्रायल पर रोक लगा दी।

कमेटी को आज दें सुझाव
ड्रग ट्रायल के लिए गठित कमेटी शनिवार प्रात: 10 से दोप. 2 बजे तक एमजीएम मेडिकल कॉलेज में माजनसुनवाई करेगी। चिकित्सा शिक्षा प्रमुख सचिव दाणी, विधि सचिव पीके वर्मा, एमसीआई के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. भरत छपरवाल, पूर्व डीएमई डॉ. एनआर भंडारी, डीएमई डॉ. वीके सेनी और खाद्य एवं औषधि प्रशासन के संयुक्त नियंत्रक डॉ. एनएम श्रीवास्तव कमेटी में शामिल हैं। कमेटी के सामने कोई भी नागरिक निजी या सरकारी अस्पताल में हुए ट्रायल की जानकारी दे सकता है। अपने साथ हुए धोखे की कहानी के साथ ही नियमों की सख्ती के बारे में भी अपनी बात रखी जा सकती है।
दो की मौत, 51 पर दुष्प्रभाव
ड्रग ट्रायल से सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 51 रोगियों पर साइड इफेक्ट हुए हैं। जबलपुर में एक कैंसर पीडि़ता और इंदौर में अल्जाइमर पीडि़ता की मौत का कारण ट्रायल रहा है। रा'य में पांच वर्ष में 2365 रोगियों पर ट्रायल हुआ। इसमें 1644 ब'चे और 721 वयस्क हैं। जिन मरीजों पर दुष्प्रभाव हुए हैं, उनके नाम जाहिर नहीं किए गए हैं। 

दोषियों पर कार्रवाई हो
सरकार का कदम स्वागत योग्य है लेकिन रोगियों की जान जोखिम में डालने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की होना चाहिए।
- डॉ. आनंद राय, सदस्य, स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति
(ट्रायल करने वाले डॉक्टरों की शिकायत करने के कारण डॉ, राय को षड्यंत्रपूर्वक तरीके से एमजीएम मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने सीनियर रेसीडेंट पद से हटा दिया गया था। )



ड्रग ट्रायल को काबू करना बेहद आसान
- सरकार ठान ले तो महफूज हो जाएं रोगी


ड्रग ट्रायल पर कानून बनाने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आईएस दाणी की अगुवाई में बनाई कमेटी शनिवार को आम लोगों के सुझाव जानेगी। विधि सचिव पीके वर्मा, एमसीआई के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. भरत छपरवाल, पूर्व डीएमई डॉ. एनआर भंडारी, डीएमई डॉ. वीके सेनी और खाद्य एवं औषधि प्रशासन के संयुक्त नियंत्रक डॉ. एनएम श्रीवास्तव भी कमेटी के सदस्य हैं। विशेषज्ञों से राय शुमारी में साफ हुआ है कि सरकार चाहे तो बेहद आसानी से ड्रग ट्रायल को काबू किया जा सकता है। जानें कैसे-
एक-
सरकारी और निजी संस्थानों की एथिकल कमेटियां सरकार के नियंत्रण में ले ली जाएं।
दो-
नर्सिंगहोम एक्ट में संशोधन करके निजी और सरकारी अस्पतालों के लिए ट्रायल की संपूर्ण जानकारी स्वास्थ्य विभाग को देना जरूरी किया जाए।
तीन-
रोगी का नुकसान पहुंचने पर निर्धारित बीमा राशि दी जाए। नियम तोडऩे वाले डॉक्टरों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज हो।
चार-
ड्रग ट्रायल के लिए आने वाली राशि सरकारी संस्थानों के खाते में जमा की जाए, ताकि कोई भी डॉक्टर रूपए के लालच में रोगी की जान से खिलवाड़ न कर सके।
पांच-
निजी संस्थानों में को मिलने वाली राशि टैक्स के दायरे में लें। जो राजस्व मिले उससे ग्रामीण इलाकों की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार किया जाए।
छह- 
अस्पतालोंं में ट्रायल का पूरा ब्यौरा देने वाले साइनबोर्ड लगाएं जाएं। इसमें शिकायत करने के लिए नाम, पता और नंबर भी हो।
सात-
नियम तोडऩे वाले डॉक्टर का रजिस्ट्रेशन स्टेट मेडिकल काउंसिल द्वारा रद्द किया जाए।


Patrika 30 Oct 2010

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