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सोमवार, जनवरी 03, 2011

मरीज एमवायएच के, ठिकाना जूनी कसेरा बाखल में

- ड्रग ट्रायल के लिए डॉक्टरों ने बदल दिया पता 


बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा विकसित  दवाओं के मरीजों पर प्रयोग यानी ड्रग ट्रायल में लिप्त डॉक्टरों ने एमवाय अस्पताल के मरीजों का गुपचुप तरीके से इस्तेमाल करने के लिए एक नए पते का इस्तेमाल किया। यह पता अस्पताल में ही काम करने वाली एक डॉक्टर का है। कई डॉक्टरों ने इस पते के जरिए दवा कंपनियों से काम हथियाया।

पता है 61, जूनी कसेरा बाखल। राजबाड़ा से सटे क्षेत्र में मौजूद इस पते पर डॉ. पुष्पा वर्मा रहती हैं। पत्रिका के पास मौजूद दस्तावेज बताते हैं कि ड्रग ट्रायल के तीन मामलों में इस पते का इस्तेमाल किया गया है।

तीन तरह से इस्तेमाल

पहला
दिल की बीमारी एट्रियल फिब्रलेशन के लिए दवा कंपनी डायची संक्यो ने जुलाई 2009 में एमवायएच के डॉ. अनिल भराणी के साथ करार किया। केंद्र सरकार का रिकॉर्ड बताता है कि डॉ. भराणी ने इस ट्रायल का पता जूनी कसेरा बाखल बताया।  

दूसरा
एमवायएच के सात डॉक्टरों ने एक पृथक एथिकल कमेटी का गठन किया। इसका नाम रखा इंडीपेंडेंट एथिक्स कमेटी फॉर कंसल्टेंट्स ऑफ एमजीएम मेडिकल कॉलेज एंड एमवायएच। इसका पता भी यही घर है।

तीसरा
विदेशी बीमा कंपनी एकॉर्ड ने तीन वर्ष पहले एमवायएच के प्रोफेसर डॉ. अशोक वाजपेयी के नाम से लाइबिलिटी इंश्योरेंस का एक करार किया। इसमें भी डॉ. वाजपेयी का पता डॉ. पुष्पा वर्मा का घर ही दिया गया।

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मेरा घर है, इसके अलावा कुछ नहीं बता सकती
जो पता आप बता रहे हैं, वह मेरा घर है। उसका इस्तेमाल किसने कहां किया, इसके बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है।
- डॉ. पुष्पा वर्मा, विभागाध्यक्ष, नेत्र रोग, एमवायएच


अहमदाबाद में हो चुका करार
डॉ. पुष्पा वर्मा ने बैक्टेरियल कंजक्टेवाइटिस के लिए टेक्सास की एल्कोन रिसर्च कंपनी द्वारा विकसित दवा के मरीजों पर ट्रायल के लिए स्पांसर कंपनी क्विवंट्ल्स रिसर्च इंडिया प्रायवेट लिमिटेड से 25 अप्रैल 2006 को करार किया था। सूचना का अधिकार में प्राप्त दस्तावेज से पता चला कि उन्होंने इस ट्रायल के लिए अहमदाबाद जाकर करार किया। कंपनी की ओर से तुशार तोपर्णी ने हस्ताक्षर किए। करार का नाम क्लिनिकल ट्रायल एग्रीमेंट है। इसमें ट्रायल के लिए आने वाली राशि का जिक्र रहता है। 

Patrika 03-01-2011

शुक्रवार, दिसंबर 31, 2010

वीडियो बयान से ड्रग ट्रायल की घेराबंदी

- ईओडब्ल्यू ने 50 से अधिक डॉक्टरों और रोगियों से की गहन पूछताछ 

बहुराष्टरीय कंपनियों द्वारा विकसित दवा के मरीजों पर परीक्षण यानी ड्रग ट्रायल से जुड़े मामले की जांच कर रहे आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने वीडियो बयान लेने का काम शुरू कर दिया है। आरोपी छह डॉक्टरों के साथ ही एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन और 50 से अधिक मरीजों से पूछताछ कर ली गई है।
पत्रिका में प्रकाशित खबरों के आधार पर स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति संगठन ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पतालों में ट्रायल करने वाले छह डॉक्टरों के खिलाफ ईओडब्ल्यू भोपाल में शिकायत दर्ज की थी। इसकी पड़ताल भोपाल पदस्थ एआईजी प्रियंका मिश्रा कर रही हैं। वे इंदौर में लगातार दौरे कर वीडियोग्राफी कर रही हैं।

वीडियाग्राफी क्यों?
क्योंकि मामला बेहद पेचिदा और संवेदनशील है। साथ ही नामचीन और प्रभावशाली डॉक्टरों के नाम जुड़े हैं। आशंका यह भी है कि एक बार बयान देने के बाद लोग बदल जाएंगें।

तीन चरण में हुए बयान
पहला
शिकायतकर्ता डॉ. आनंद राजे और आरोपी डॉ. अपूर्व पुराणिक, डॉ. अनिल भराणी, डॉ. पुष्पा वर्मा, डॉ. हेमंत जैन, डॉ. सलिल भार्गव और डॉ. अशोक वाजपेयी।
दूसरा
एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत एवं कॉलेज की एथिकल कमेटी के कुछ सदस्य।
तीसरा
वे मरीज जिन पर प्रयोग किए गए। यह पूछा गया कि क्या आपको ट्रायल की जानकारी दी गई है।

 
इंदौर में होगी सुझावों की छंटनी

ड्रग ट्रायल को लेकर शनिवार को हुई जनसुनवाई में आए सुझावों की छंटनी एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन करेंगें। कमेटी के अध्यक्ष और चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आईएस दाणी ने यह फैसला किया है। वे सभी 168 सुझावों को यहीं छोड़कर भोपाल रवाना हुए। जाने से पहले दाणी ने पांचों मेडिकल कालेजों के डीन की बैठक भी ली। सभी से नियमों को खंगालने के लिए कहा गया है। सूत्रों का कहना है कि जनसुनवाई के दौरान कई सरकारी कर्मचारियों ने भी ड्रग ट्रायल को लेकर सुझाव रखे हैं। विश्लेषण किया जा रहा है कि ये सुझाव सरकार की मंशा के विपरीत तो नहीं। 


Patrika 1 Nov 2010

ड्रग ट्रायल की निगरानी जरूरी

- ड्रग ट्रायल पर सुनवाई का एक स्वर

बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवाओं के मरीजों पर प्रयोग यानी ड्रग ट्रायल को काबू करने के लिए रा'य में निगरानी तंत्र की जरूरत पर शनिवार को इंदौर में एक स्वर से आवाज उठी। डॉक्टर, सामाजिक कार्यकर्ता, जनप्रतिनिधियों, मीडियाकर्मियों और मेडिकल छात्रों की राय है कि रा'य में ऐसा कानून बने जिससे की रोगियों की जिंदगी महफूज रहे। हर ड्रग ट्रायल को पारदर्शी बनाया जाए और नियम तोडऩे वालों को दंडित करने का प्रावधान हो। 
ड्रग ट्रायल पर राज्य में कानून बनाने के संबंध में सिफारिश करने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आईएस दाणी की अगुवाई में बनी कमेटी ने शनिवार को एमजीएम मेडिकल कॉलेज सभागृह में करीब तीन घंटे तक जनसुनवाई की।  इसमें 168 जागरूक लोगों ने लिखित और मौखिक सुझाव और आपत्तियां दर्ज करवाईं।

ट्रायल की जरूरत पर तीन राय
पहली: जारी रहें क्योंकि इसके बगैर चिकित्सा विज्ञान की प्रगति संभव नहीं।
दूसरी: बंद हों क्योंकि दवा कंपनियां से मिलने वाले धन के चक्कर में रोगियों की जान जोखिम में डाली जाती है।
तीसरी: आईसीएमआर और डब्ल्यूएचओ द्वारा फंडेड ट्रायल हों क्योंकि वे सीधे तौर पर मानवहित से जुड़े होते हैं। 

कमेटी को मिले दस अहम सुझाव

एक:
डब्ल्यूएचओ और आईसीएमआर की गाइडलाइन का पालन सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र बोर्ड बने।
दो:
सरकारी और निजी संस्थानों की एथिकल कमेटियां सरकार के नियंत्रण में रहें।
तीन: 
रोगी का नुकसान पहुंचने पर निर्धारित बीमा राशि दी जाए।
चार:
नियम तोडऩे वाले डॉक्टरों को दस वर्ष तक के दंड का प्रावधान हो।
पांच :
रा'य में सिर्फ चौथे चरण (दवा को बाजार में बेचने की अनुमति के बाद) के ट्रायल की अनुमति दी जाए।
छह :
ड्रग ट्रायल के लिए आने वाली राशि सरकारी संस्थानों के खाते में जमा हो।
सात :
प्लेसिबो ट्रायल (नकली दवा से उपचार) पर पाबंदी रहे।
आठ: 
बीस वर्ष का चिकित्सकीय अनुभव रखने वाले डॉक्टर ही ट्रायल करने के पात्र माने जाएं।
नौ:
अशिक्षित और बीपीएल श्रेणी रोगियों को ट्रायल का हिस्सा नहीं बनाया जाए।
दस :
नर्सिंगहोम एक्ट में संशोधन कर निजी और सरकारी अस्पतालों के लिए ट्रायल की संपूर्ण जानकारी स्वास्थ्य विभाग को देना जरूरी हो।


मेरे लाड़ले को बीमारी दे दी
जब सुझाव समिति से ही पीडि़त ने मांगा सुझाव 

जनसुनवाई के दौरान कुछ समय के लिए गमगीन माहौल हो गया। जब 6 माह के शिशु यथार्थ के पिता अजय नाईक फूट-फूटकर रोने लगे। अजय के बेटे का जन्म ८ माह पहले ८ मार्च को हुआ। वेलोसिटी टॉकिज के नजदीक धीरज नगर में रहने वाले अजय ने बताया कि यथार्थ को ट्रायल का पहला टीका शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. हेमंत जैन ने लगाया। वे मुझे हर बार आने-जाने के 50 रुपए भी देते थे। इसी क्रम में दूसरा टीका अगले माह लगाया गया। जिसके कुछ दिनों बाद ही बेटे को सफेद दाग उठने लगे। डॉ. जैन को दिखाया तो उन्होंने साबुन, क्रीम, पावडर बदलने को कहा। दाग और बढऩे लगे तो फिर डॉ. जैन को दिखाया, उन्होंने इस बार क्रीम लिखकर दिया और लगाने को कहा। स्थिति फिर भी नहीं संभली तो डॉ. जैन ने मुझे त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. एचके नारंग के पास भेजा, कुछ दिन उन्होंने उपचार किया और बीमारी कम नहीं होने पर मुझे होम्योपैथ चिकित्सक के पास जाने की सलाह दी। वहीं डॉ. जैन ने यथार्थ को टीके लगाना बंद कर दिए हैं और मुझसे कहा है कि मैं आंगनवाड़ी केंद्र पर जाके बाकी टीके लगवाता रहूं। समिति के चेअरमेन दाणी द्वारा टोके जाने पर अजय ने उनसे ही सवाल किया कि आप ही मुझे सुझाव दें कि अब मैं कहां जाउं, किससे शिकायत करूं। मेरे इकलौते बेटे को उन्होंने जो स्थायी बीमारी दी है इसके लिए किसे जिम्मेदार मानूं। 


ड्रग ट्रायल जनसुनवाई

'ठीक होने तक क्यों नहीं मिलती दवा '
- ड्रग ट्रायल पर जनसुनवाई में ट्रायल पीडि़त ने बयां की दास्तां 
- तीन घंटे तक आते रहे सुझाव


मैं पार्किंसन रोग से ग्रसित हूं। २००८ में डॉ. अपूर्व पुराणिक ने मुझे ट्रायल में शामिल किया। उससे मुझे लाभ भी मिला। शुरू में कहा था कि ठीक होने में एक साल का वक्त लगेगा। एक साल बाद कहा उपचार लंबे समय तक चलेगा, लेकिन ट्रायल अवधि समाप्त होने के बाद उन्हें ट्रायल की दवा बंद कर दी। मैं पिछले एक साल से दवा के बगैर जी रहा हूं और पूर्वावस्था में लौट रहा हूं। मैं सेवानिवृत्त हूं और दवा के नाम पर 6 हजार रु हर माह खर्च होते हैं। ऐसा नियम बनाए कि जब तक मरीज ठीक न हो जाए ट्रायल के दौरान दी जाने वाली दवाएं उपलब्ध कराई जाना चाहिए।
यह ड्रग ट्रायल से पीडि़त एमकेएस गौतम ने का कहना है। शनिवार को वे ड्रग ट्रायल पर कानून बनाने के संबंध में गठित कमेटी द्वारा एमजीएम मेडिकल कॉलेज सभागृह में जारी जनसुनवाई में मौजूद थे। चिकित्सा शिक्षा प्रमुख सचिव आईएस दाणी, डीएमई डॉ. वीके सैनी, पूर्व डीएमई डॉ. एनआर भंडारी, पूर्व कुलपति डॉ. भरत छपरवाल, ड्रग कंट्रोलर राकेश श्रीवास्तव, संभागीय संयुक्त संचालक स्वास्थ्य डॉ. शरद पंडित, एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत समेत प्रदेश के पांचों मेडिकल कॉलेज के डीन ने उनकी बात सुनी।

बंद कमरे में जनसुनवाई देख भड़के लोग
निर्धारित समय से तीन घंटे देरी से बंद कमरे में शुरू हुई जनसुनवाई को देख ्रसुझाव देने पहुंचे लोग भड़क गए। सामाजिक कार्यकर्ता क ल्पना मेहता, चिन्मय मिश्र, राकेश चांदौरे, किशोर कोडवानी, गौतम कोठारी, राजेंद्र के. गुप्ता, रामगोपाल शर्मा आदि ने नारेबाजी की। बाद में सरदारपुर विधायक प्रताप ग्रेवाल ने धरने पर बैठने की धमकी दी तो कमेटी बाहर आ गई। जनसुनवाई दोपहर एक बजे शुरू हुई और चार बजे तक चली। १६८ सुझावकर्ताओं में से ३८ ने मौखिक बात भी रखी, शेष ने लिखित आवेदन दिए।

आठ संगठनों की एक बात
मानसी स्वास्थ्य संस्थान, मप्र महिला मंच, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन, झुग्गी बस्ती संघर्ष मोर्चा, दीनबंधु सामाजिक संस्था, शिल्पी केंद्र, इंदौर समर्थक समूह और संदर्भ दस्तावेजीकरण केंद्र की ओर से कल्पना मेहता ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा निजी और सरकारी दोनों क्षेत्रों में ट्रायल की निगरानी का सख्त और सक्षम तंत्र विकसित किया जाए। ट्रायल के पांच वर्ष बाद तक रोगी को उपचार सेवा दी जाए।

बाहर के विधायक पहुंचे, इंदौर के नदारद
जन मुद्दों के प्रति इंदौर के नेताओं की संवेदनशीलता की एक बार फिर पोल खुल गई। ड्रग ट्रायल पर जनसुनवाई में सरदारपुर विधायक प्रताप ग्रेवाल और रतलाम विधायक पारस सकलेचा पहुंचे लेकिन इंदौर की सांसद और विधायकों में से कोई नहीं पहुंचा। किसी दल का प्रतिनिधित्व भी नहीं आया।



ट्रायल के पहले मरीज और उसके रिश्तेदारों को शिक्षित किया जाए।
- मनोरमा मेनन, सामाजिक कार्यकर्ता

ट्रायल की आड़ में हो रही गड़बड़ी को जांचा जाना चाहिए। 
- डॉ. अरविंद दुबे, होम्योपैथिक चिकित्सक

आयुर्वेद, होम्योपैथ और अन्य चिकित्सा पद्धतियों को ट्रायल में शामिल किया। 
- डॉ. आशीष पटेल, सहायक प्राध्यापक, मेडिसिन

निजी संस्थानों में को मिलने वाली राशि टैक्स के दायरे में आए। जो राजस्व मिले उससे ग्रामीण इलाकों की सेवाओं में सुधार किया जाए।
- डॉ. आनंद राजे, अध्यक्ष, स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति

ड्रग ट्रायल को लेकर पहले से ही सख्त नियम बने हुए हैं। इन नियमों का पालन तटस्थता के साथ किया जाना सुनिश्चित हों। ट्रायल से भविष्य में होने वाले उपचार में मदद होती है। 
- डॉ. अनिल बंडी, अध्यक्ष, आईएमए इंदौर

नियम ऐसे बनें कि कोई भी अस्पताल आसानी से ट्रायल कर सके। ट्रायल प्रोटोकॉल के अनुसार होना चाहिए। रा'यस्तरीय कमेटी बने जो पूरी देखभाल करे।
- डॉ. सविता इनामदार, वरिष्ठ चिकित्सक

गैर जिम्मेदार डॉक्टर आर्थिक हितों के चलते गलत कदम उठा रहे हैं उनकी निगरानी हो।
- डॉ. उ''वल सरदेसाई, मनोचिकित्सक, एमवायएच

एथिकल कमेटी के अधिकारों को बढ़ाया जाए। यह एक जिम्मेदार कमेटी होती है, जिस पर मरीजों और दवा कंपनियों की जानकारी को गोपनीय रखने की जिम्मेदारी होती है। 
- डॉ. केडी भार्गव, चेअरमैन, एथिकल कमेटी, एमजीएम कॉलेज

ड्रग ट्रायल को लेकर नियम-कायदे अभी केंद्र सरकार और राष्ट्रीय एजेंसियों के हाथ में हैं, इसमें रा'य सरकार की भूमिका भी स्पष्ट हो। ट्रायल में शामिल मरीज को कम से कम 5 वर्ष तक निगरानी में रखा जाना चाहिए। नवजात और ब"ाों पर होने वाले ट्रायल को प्रतिबंधित हों। 
- डॉ. गौतम कोठारी, अध्यक्ष, पीथमपुर औद्योगिक संगठन

निजी संस्थानों में होने वाले ट्रायल को प्रतिबंधित कर देना चाहिए। वे केवल आर्थिक हितों को साधने के लिए लोगों की जान से खिलवाड़ करते हैं। ट्रायल से गुजर रहे व्यक्ति को यदि लाभ मिलता है तो उसके पूर्णत: स्वस्थ होने तक वही दवा उपलब्ध होना चाहिए। 
- किशोर कोडवानी, सामाजिक कार्यकर्ता

नियम बनाते समय प्रशासकीय नियमों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। प्रदेश में बनने जा रहे नियमों को अन्य रा'यों की तरह ही बनाया जाए। ट्रायल कर रहे डॉक्टरों के आर्थिक हितों का ध्यान रखा जाए।
डॉ. अपूर्व पुराणिक, न्यूरोफिजिशियन, एमवायएच

रेगुलेटरी बोर्ड का गठन किया जाए। दवा कंपनी-मरीज और डॉक्टर के बीच अनुबंध हो। आदिवासी अंचलों से आने वाले मरीजों को एमवायएच के डॉक्टर डब्ल्यूएचओ के नाम पर मिलने वाली मदद के बहाने आश्वस्त करते हैं। खुलकर ट्रायल के जानकारी नहीं देते। अस्पतालों में जानकारी सार्वजनिक की जाए कि कौन-कौन डॉक्टर ट्रायल कर रहे हैं, ट्रायल से होने वाले प्रभाव और दुष्प्रभाव की जानकारी दी जाए। ट्रायल कर रहे डॉक्टर के बाहरी कमरे में काउंसलर की भी व्यवस्था की जाए, जो मरीज को सही-सही जानकारी दे। 
- प्रताप गे्रवाल, विधायक सरदारपुर।

ट्रायल के दौरान मरीज को होने वाले नुकसान के लिए डॉक्टर पर कानूनी शिकंजा कसा जाए। १० वर्ष की सजा का प्रावधान भी रखा जा सकता है। प्रदेश में केवल फेज फोर ट्रायल की अनुमति दी जाए। जिस भी मरीज का चयन किया जाए उसका शिक्षित होना अनिवार्य हो। ट्रायल के बाद मरीज को कम मूल्य पर दवा की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। विशेषज्ञ के रूप में डॉक्टर को कम से कम २० वर्ष का अनुभव हो साथ ही ट्रायल में पांच अन्य विशेषज्ञ भी शामिल किए जाएं। 
- पारस सखलेचा, विधायक, रतलाम

ट्रायल के लिए मरीज चयन में पारदर्शिता रखी जाए। ट्रायल अवधि अथवा ट्रायल समाप्त होने के बाद एक निश्चित अवधि में मरीज को परेशानी हो तो उसके उपचार और इंश्योरेंस की उचित व्यवस्था की जाए। प्लेसिबो ट्रायल ऐसी बीमारी में किया जाए जिसका उपचार मौजूद नहीं हो। ट्रायल से होने वाले रिसर्च को जरनल में प्रकाशित किया जाए। शोध से सामने आने वाली जानकारियां राष्ट्र की संपत्ति हो न कि दवा कंपनियों की। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में ड्रग ट्रायल एडवाइजरी बोर्ड का गठन किया जाए। जिसके पास प्रदेश में ड्रग ट्रायल के नियमन संबंधी सभी अधिकार हों।
डॉ. आनंद राय, सदस्य, स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति

तीन फार्मा कंपनियों ने भी दर्ज की उपस्थिति -
सरकार जो पैसा दस सालों में नहीं दे सकती वो निजी कंपनियां एक साल में ही दे देती हैं। नियमों का निर्धारण सरकार करे।
नीरज शर्मा, प्रतिनिधि, फार्मा कंपनी।
प्रदेश स्तरीय समिति बनाई जाना चाहिए जो मेडिको लीगल प्रकरणों पर तो ध्यान दे ही, उद्योगों के पक्ष को भी समझे और अपने विचार दे।  
संजय मेहता, प्रतिनिधि, फार्मा कंपनी।
फार्मा कंपनियों द्वारा दी जाने वाली राशि का सही संयोजन होना चाहिए। ड्रग ट्रायल पूरी तरह से कानूनन है, पूरा मामला पैसोंं की अव्यवस्था को लेकर उठता दिख रहा है। 
समीर गोखले, प्रतिनिधि, फार्मा कंपनी।

इन्होंने भी दिए सुझाव 
 प्रभु जोशी, राजेंद्र के. गुप्ता, डॉ. विजय भाईसारे, डॉ. देव पाटौदी, डॉ. माधव हासानी, डॉ. श्रुती मूथा, डॉ. गोपाल शर्मा, डॉ.  नम्रता गायकवाड़, डॉ. दीपक मूलचंदानी, डॉ. अभय ठाकुर, डॉ. जनक पलटा,डॉ. सुरेश वर्मा, नागेश व्यास, जेके व्यास, डॉ. नीरजा पौराणिक, विनय बाकलीवाल, आशुतोष महाजन।  

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एक माह में सुझाव देगी कमेटी
ड्रग ट्रायल को लेकर कानून बनाने के संबंध में कमेटी से सुझाव मांगे गए हैं और हम वही कर रहे हैं। संभवत: मप्र देश का पहला राज्य होगा, जहां इस तरह का कदम उठाया जा रहा है। कमेटी के सुझाव एक माह में सरकार को दे दिए जाएंगें। नियमों को अंतिम रूप दिए जाने तक नए ड्रग ट्रायल प्रतिबंधित रहेंगे। ड्रग ट्रायल के आरोपों से घिरे किसी भी डॉक्टर के खिलाफ फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं की है। 
- आईएस दाणी, प्रमुख सचिव, चिकित्सा शिक्षा विभाग 

Patrtika 31 Oct 2010 


नए ड्रग ट्रायल पर रोक

सरकारी और निजी अस्पतालों में अब मरीज नहीं बनेंगे चूहे

बहुराष्टरीय कंपनियों द्वारा विकसित दवाइयों के मरीजों पर प्रयोग यानी ड्रग ट्रायल को आखिर रा'य सरकार ने गलत मान ही लिया। सरकार ने आदेश दिया है किअब सरकारी और निजी अस्पतालों में कोई ट्रायल नहीं कि या जाएगा। साफ है कि अब इलाज के लिए जाने वाले रोगी पर चूहा समझकर प्रयोग नहीं किया जा सकेगा। हांलाकि, दवा कंपनियों के साथ हो चुके अनुबंधों के चलते पहले से जारी ट्रायल को फिलहाल नहीं रोका गया है। 
ड्रग ट्रायल के संबंध में कानून बनाने के लिए चिकित्सा शिक्षा प्रमुख सचिव आईएस दाणी की अध्यक्षता में गठित रा'य स्तरीय कमेटी ने ड्रग ट्रायल पर रोक लगाने की सिफारिश की थी। शुक्रवार को सरकार ने इसे मंजूर कर लिया। अब सरकारी, निजी मेडिकल कॉलेजों, डेंटल कॉलेजों, स्वास्थ्य विभाग के तहत आने वाले सभी अस्पतालों और भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के अधीनस्थ सरकारी अस्पतालों में ट्रायल नहीं किए जाएंगें। 

पत्रिका खुलासे के पहले सरकार भी नहीं जानती थी ट्रायल  (ईपीएस के साथ जाएगा यह बॉक्स)
ड्रग ट्रायल के गोरखधंधे का पहला खुलासा पत्रिका ने 14 जुलाई को कि या था। इसके पहले सरकार को भी पता नहीं था कि दवा कंपनियों से फायदा कमाने के लिए रा'य के सरकारी और निजी अस्पतालों के कुछ डॉक्टर रोगियों को चूहे की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। पत्रिका ने तथ्यात्मक खुलासा करते हुए अब तक पचास से अधिक खबरें प्रकाशित की हैं। इसी का असर है कि सरकार ने पहले कानून बनाने के लिए कमर कसी और अब ट्रायल पर रोक लगा दी।

कमेटी को आज दें सुझाव
ड्रग ट्रायल के लिए गठित कमेटी शनिवार प्रात: 10 से दोप. 2 बजे तक एमजीएम मेडिकल कॉलेज में माजनसुनवाई करेगी। चिकित्सा शिक्षा प्रमुख सचिव दाणी, विधि सचिव पीके वर्मा, एमसीआई के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. भरत छपरवाल, पूर्व डीएमई डॉ. एनआर भंडारी, डीएमई डॉ. वीके सेनी और खाद्य एवं औषधि प्रशासन के संयुक्त नियंत्रक डॉ. एनएम श्रीवास्तव कमेटी में शामिल हैं। कमेटी के सामने कोई भी नागरिक निजी या सरकारी अस्पताल में हुए ट्रायल की जानकारी दे सकता है। अपने साथ हुए धोखे की कहानी के साथ ही नियमों की सख्ती के बारे में भी अपनी बात रखी जा सकती है।
दो की मौत, 51 पर दुष्प्रभाव
ड्रग ट्रायल से सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 51 रोगियों पर साइड इफेक्ट हुए हैं। जबलपुर में एक कैंसर पीडि़ता और इंदौर में अल्जाइमर पीडि़ता की मौत का कारण ट्रायल रहा है। रा'य में पांच वर्ष में 2365 रोगियों पर ट्रायल हुआ। इसमें 1644 ब'चे और 721 वयस्क हैं। जिन मरीजों पर दुष्प्रभाव हुए हैं, उनके नाम जाहिर नहीं किए गए हैं। 

दोषियों पर कार्रवाई हो
सरकार का कदम स्वागत योग्य है लेकिन रोगियों की जान जोखिम में डालने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की होना चाहिए।
- डॉ. आनंद राय, सदस्य, स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति
(ट्रायल करने वाले डॉक्टरों की शिकायत करने के कारण डॉ, राय को षड्यंत्रपूर्वक तरीके से एमजीएम मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने सीनियर रेसीडेंट पद से हटा दिया गया था। )



ड्रग ट्रायल को काबू करना बेहद आसान
- सरकार ठान ले तो महफूज हो जाएं रोगी


ड्रग ट्रायल पर कानून बनाने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आईएस दाणी की अगुवाई में बनाई कमेटी शनिवार को आम लोगों के सुझाव जानेगी। विधि सचिव पीके वर्मा, एमसीआई के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. भरत छपरवाल, पूर्व डीएमई डॉ. एनआर भंडारी, डीएमई डॉ. वीके सेनी और खाद्य एवं औषधि प्रशासन के संयुक्त नियंत्रक डॉ. एनएम श्रीवास्तव भी कमेटी के सदस्य हैं। विशेषज्ञों से राय शुमारी में साफ हुआ है कि सरकार चाहे तो बेहद आसानी से ड्रग ट्रायल को काबू किया जा सकता है। जानें कैसे-
एक-
सरकारी और निजी संस्थानों की एथिकल कमेटियां सरकार के नियंत्रण में ले ली जाएं।
दो-
नर्सिंगहोम एक्ट में संशोधन करके निजी और सरकारी अस्पतालों के लिए ट्रायल की संपूर्ण जानकारी स्वास्थ्य विभाग को देना जरूरी किया जाए।
तीन-
रोगी का नुकसान पहुंचने पर निर्धारित बीमा राशि दी जाए। नियम तोडऩे वाले डॉक्टरों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज हो।
चार-
ड्रग ट्रायल के लिए आने वाली राशि सरकारी संस्थानों के खाते में जमा की जाए, ताकि कोई भी डॉक्टर रूपए के लालच में रोगी की जान से खिलवाड़ न कर सके।
पांच-
निजी संस्थानों में को मिलने वाली राशि टैक्स के दायरे में लें। जो राजस्व मिले उससे ग्रामीण इलाकों की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार किया जाए।
छह- 
अस्पतालोंं में ट्रायल का पूरा ब्यौरा देने वाले साइनबोर्ड लगाएं जाएं। इसमें शिकायत करने के लिए नाम, पता और नंबर भी हो।
सात-
नियम तोडऩे वाले डॉक्टर का रजिस्ट्रेशन स्टेट मेडिकल काउंसिल द्वारा रद्द किया जाए।


Patrika 30 Oct 2010

ड्रग ट्रायल की विदेश यात्राओं में घालमेल

- सरकार की अनुमति के बगैर कंपनियों के खर्च से भर ली उड़ान
- लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू को शिकायत


एमजीएम मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पतालों में आने वाले रोगियों पर ड्रग ट्रायल करने वाले डॉक्टरों की विदेश यात्राओं में घालमेल सामने आया है। डॉक्टरों ने बीते छह वर्र्षों में एक दर्जन से अधिक विदेश यात्राएं की, लेकिन ज्यादातर में इन्होंने सरकार से अनुमति नहीं ली। एक ने बैंकांक और टर्की की अपनी यात्राओं की जानकारी छुपाने की कोशिश भी की है।

सूचना का अधिकार में प्राप्त दस्तावेज में खुलासा हुआ है कि छह डॉक्टर 14 बार विदेश गए। जाने से पहले इन्होंने अर्जित अवकाश लिया और सरकार से अनुमति के इंतजार में विदेश घुम आए। सरकार से आज तक अनुमति नहीं मिली है। स्वास्थ्य समपर्ण सेवा संस्था ने इसकी शिकायत ईओडब्ल्यू में और एक सामाजिक कार्यकर्ता ने लोकायुक्त में की है।

विधानसभा में जानकारी बताकर फंस गए
मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. अनिल भराणी विदेश जाने की एक जानकारी में फंस गए हैं। विधानसभा प्रश्न के जवाब में उन्होंने बताया था कि ट्रायल के सिलसिले में वे 8 से 10 दिसंबर 2006 तक बैंकाक और मार्च 2009 में टर्की गए थे। दोनों ही यात्राएं दवा कंपनियों द्वारा प्रायोजित थी। अब डॉ. भराणी ये दोनों यात्राएं छुपा रहे हैं। सूचना का अधिकार में उन्होंने इन यात्राओं की जानकारी नहीं दी हैं। एक विधायक ने इस तथ्य की शिकायत चिकित्सा शिक्षा विभाग को की है।

बगैर अनुमति कौन कब कहां गया

क्रं.    कौन                            कहां            कब                       
1.    डॉ. अपूर्व पुराणिक        बोस्टन        25 अप्रैल से 5 मई 2007     
2.    डॉ. हेमंत जैन                फ्रांस            17 से 18 अप्रैल 2007
3.    डॉ. हेमंत जैन               जिनेवा         21 से 24 अक्टूबर 2009
4.    डॉ. अशोक वाजपेयी      यूएसए        16 जुलाई से 13 अगस्त 2005
5.    डॉ. अशोक वाजपेयी      यूएसए        14 मई से 12 जून 2007
6.  डॉ. पुष्पा वर्मा                 हांगकांग        28 जून से 2 जुलाई 2008
7.    डॉ. सलिल भार्गव          हांगकांग        11 से 14 जनवरी 2009
8.    डॉ. सलिल भार्गव          मेड्रिड            25 फरवरी से 3 मार्च 2009
9.    डॉ. सलिल भार्गव          लंदन            14 से 17 अप्रैल 2009
10. डॉ. अनिल भराणी          आरलियंस    1 से 6 मार्च 2004
11. डॉ. अनिल भराणी        पोर्टलैंड        1 से 30 जून 2004
12. डॉ. अनिल भराणी        अटलांटा        9 से 22 मार्च 2006
13. डॉ. अनिल भराणी        मलेशिया,कनाड़ा    26 मार्च से 10 अप्रैल 2008   
14. डॉ. अनिल भराणी        अटलांटा        14 से 20 मार्च 2010   ्र


ड्रग ट्रायल पर 30 को जनसुनवाई
 ड्रग ट्रायल  के संबंध में कानून बनाने के लिए शासन द्वारा गठित कमेटी ३० अक्टूबर को प्रात: १0 से २ बजे के बीच एमजीएम मेडिकल कॉलेज में जनसुनवाई करेगी। कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत ने बताया कमेटी में चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आईएस दाणी, विधि सचिव पीके वर्मा, एमसीआई के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. भरत छपरवाल, पूर्व डीएमई डॉ. एनआर भंडारी, डीएमई डॉ. वीके सेनी और खाद्य एवं औषधि प्रशासन के संयुक्त नियंत्रक डॉ. एनएम श्रीवास्तव शामिल हैं।

Patrika 29 Oct 2010

दवा कंपनियों को भी चपत

- ड्रग ट्रायल करने वाले डॉक्टरों से स्पांसर नाराज
- रिजल्ट पर आशंका जताते हुए भेजा ई-मेल


बहुराष्टरीय कंपनियों द्वारा विकसित दवाइयों के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) पर अब वे कंपनियां भी ऐतराज जता रही हैं जिन्होंने डॉक्टर के साथ आर्थिक समझौते किए। एक स्पांसर कंपनी ने इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज में हुए ट्रायल के रिजल्ट पर आशंका जताते हुए प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर को पत्र लिखा है। अनुमान है कि अब यह कंपनी इंदौर के डॉक्टरों को अब ट्रायल का काम नहीं सौंपेगी।

ड्रग ट्रायल पर 30 को जनसुनवाई
इंदौर, सिटी रिपोर्टर। बहुराष्टरीय कंपनियों द्वारा विकसित दवाइयों के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) के संबंध में कानून बनाने के लिए शासन द्वारा गठित कमेटी ३० अक्टूबर को दोपहर १२ से २ बजे के बीच एमजीएम मेडिकल कॉलेज में जनसुनवाई करेगी। कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत ने बताया कमेटी में चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आईएस दाणी, विधि सचिव पीके वर्मा, एमसीआई के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. भरत छपरवाल, पूर्व डीएमई डॉ. एनआर भंडारी, डीएमई डॉ. वीके सेनी और खाद्य एवं औषधि प्रशासन के संयुक्त नियंत्रक डॉ. एनएम श्रीवास्तव शामिल हैं। कमेटी के सामने कोई भी नागरिक व्यक्तिगत रूप से अपनी बात लिखित या मौखिक में दर्ज करा सकता है।

Patrika  27 Oct 2010

क्यों छुपाई ड्रग ट्रायल की बातें?

- आरटीआई केस में मेडिकल कॉलेज डीन चेंबर में हुई सुनवाई
- अहम सवालों पर अंदाज के तीर चलाते रहे एमवायएच अधीक्षक


ड्रग ट्रायल का ब्यौरा जब आर्थोपेडिक्स विभाग दे सकता है तो शिशु रोग, मेडिसिन विभाग क्यों नहींï? डॉक्टर और स्पांसर कंपनी के बीच होने वाले क्लिनिकल ट्रायल एग्रीमेंट (सीटीए) को क्या भारत सरकार ने गोपनीय दस्तावेज माना है? विधानसभा को भेजी गई जानकारी और इंदौर में दी गई जानकारी में अंतर क्यों है?
 मंगलवार को ये सवाल एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत के चेंबर में गूंजे। मौका सूचना का अधिकार में स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति के डॉ. आनंद राय को जानकारी नहीं देने की अपील की सुनवाई का था। जवाब एमवायएच अधीक्षक डॉ. सलिल भार्गव को देना थे। तथ्यात्मक बात रखने के बजाए अनुमान के आधार पर तर्क रखते हुए उन्होंने उत्तर दिए जो नामंजूर हो गए। शिशु, नेत्र और मेडिसिन विभाग ने वह जानकारी क्यों नहीं दी जो विधानसभा में भेजी गई, के जवाब में डॉ. भार्गव संतुष्टï नहीं कर पाए। अपीलकर्ता ने तत्काल नि:शुल्क जानकारी देने और दोषियों पर अर्थ दंड करने की मांग की। कॉलेज डीन ने फिलहाल फैसला नहीं दिया है।

'कालिख पोतने की आदत'
अपीलकर्ता ने डीन को बताया एमवायएच प्रबंधन और कुछ विभागाध्यक्षों को काले कारनामों पर कालिख पोतने की आदत है। मेडिसिन विभाग ने ट्रायल से जुड़ी एक सूचना में सीटीए के उस अंश पर कालिख पोत दी थी जिसमें कंपनी से आने वाली राशि की जानकारी थी।

Patrika 26 Oct 2010