- ड्रग ट्रायल पर सुनवाई का एक स्वर
बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवाओं के मरीजों पर प्रयोग यानी ड्रग ट्रायल को काबू करने के लिए रा'य में निगरानी तंत्र की जरूरत पर शनिवार को इंदौर में एक स्वर से आवाज उठी। डॉक्टर, सामाजिक कार्यकर्ता, जनप्रतिनिधियों, मीडियाकर्मियों और मेडिकल छात्रों की राय है कि रा'य में ऐसा कानून बने जिससे की रोगियों की जिंदगी महफूज रहे। हर ड्रग ट्रायल को पारदर्शी बनाया जाए और नियम तोडऩे वालों को दंडित करने का प्रावधान हो।
ड्रग ट्रायल पर राज्य में कानून बनाने के संबंध में सिफारिश करने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आईएस दाणी की अगुवाई में बनी कमेटी ने शनिवार को एमजीएम मेडिकल कॉलेज सभागृह में करीब तीन घंटे तक जनसुनवाई की। इसमें 168 जागरूक लोगों ने लिखित और मौखिक सुझाव और आपत्तियां दर्ज करवाईं।
ट्रायल की जरूरत पर तीन राय
पहली: जारी रहें क्योंकि इसके बगैर चिकित्सा विज्ञान की प्रगति संभव नहीं।
दूसरी: बंद हों क्योंकि दवा कंपनियां से मिलने वाले धन के चक्कर में रोगियों की जान जोखिम में डाली जाती है।
तीसरी: आईसीएमआर और डब्ल्यूएचओ द्वारा फंडेड ट्रायल हों क्योंकि वे सीधे तौर पर मानवहित से जुड़े होते हैं।
कमेटी को मिले दस अहम सुझाव
एक:
डब्ल्यूएचओ और आईसीएमआर की गाइडलाइन का पालन सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र बोर्ड बने।
दो:
सरकारी और निजी संस्थानों की एथिकल कमेटियां सरकार के नियंत्रण में रहें।
तीन:
रोगी का नुकसान पहुंचने पर निर्धारित बीमा राशि दी जाए।
चार:
नियम तोडऩे वाले डॉक्टरों को दस वर्ष तक के दंड का प्रावधान हो।
पांच :
रा'य में सिर्फ चौथे चरण (दवा को बाजार में बेचने की अनुमति के बाद) के ट्रायल की अनुमति दी जाए।
छह :
ड्रग ट्रायल के लिए आने वाली राशि सरकारी संस्थानों के खाते में जमा हो।
सात :
प्लेसिबो ट्रायल (नकली दवा से उपचार) पर पाबंदी रहे।
आठ:
बीस वर्ष का चिकित्सकीय अनुभव रखने वाले डॉक्टर ही ट्रायल करने के पात्र माने जाएं।
नौ:
अशिक्षित और बीपीएल श्रेणी रोगियों को ट्रायल का हिस्सा नहीं बनाया जाए।
दस :
नर्सिंगहोम एक्ट में संशोधन कर निजी और सरकारी अस्पतालों के लिए ट्रायल की संपूर्ण जानकारी स्वास्थ्य विभाग को देना जरूरी हो।
मेरे लाड़ले को बीमारी दे दी
जब सुझाव समिति से ही पीडि़त ने मांगा सुझाव
जनसुनवाई के दौरान कुछ समय के लिए गमगीन माहौल हो गया। जब 6 माह के शिशु यथार्थ के पिता अजय नाईक फूट-फूटकर रोने लगे। अजय के बेटे का जन्म ८ माह पहले ८ मार्च को हुआ। वेलोसिटी टॉकिज के नजदीक धीरज नगर में रहने वाले अजय ने बताया कि यथार्थ को ट्रायल का पहला टीका शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. हेमंत जैन ने लगाया। वे मुझे हर बार आने-जाने के 50 रुपए भी देते थे। इसी क्रम में दूसरा टीका अगले माह लगाया गया। जिसके कुछ दिनों बाद ही बेटे को सफेद दाग उठने लगे। डॉ. जैन को दिखाया तो उन्होंने साबुन, क्रीम, पावडर बदलने को कहा। दाग और बढऩे लगे तो फिर डॉ. जैन को दिखाया, उन्होंने इस बार क्रीम लिखकर दिया और लगाने को कहा। स्थिति फिर भी नहीं संभली तो डॉ. जैन ने मुझे त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. एचके नारंग के पास भेजा, कुछ दिन उन्होंने उपचार किया और बीमारी कम नहीं होने पर मुझे होम्योपैथ चिकित्सक के पास जाने की सलाह दी। वहीं डॉ. जैन ने यथार्थ को टीके लगाना बंद कर दिए हैं और मुझसे कहा है कि मैं आंगनवाड़ी केंद्र पर जाके बाकी टीके लगवाता रहूं। समिति के चेअरमेन दाणी द्वारा टोके जाने पर अजय ने उनसे ही सवाल किया कि आप ही मुझे सुझाव दें कि अब मैं कहां जाउं, किससे शिकायत करूं। मेरे इकलौते बेटे को उन्होंने जो स्थायी बीमारी दी है इसके लिए किसे जिम्मेदार मानूं।
ड्रग ट्रायल जनसुनवाई
'ठीक होने तक क्यों नहीं मिलती दवा '
- ड्रग ट्रायल पर जनसुनवाई में ट्रायल पीडि़त ने बयां की दास्तां
- तीन घंटे तक आते रहे सुझाव
मैं पार्किंसन रोग से ग्रसित हूं। २००८ में डॉ. अपूर्व पुराणिक ने मुझे ट्रायल में शामिल किया। उससे मुझे लाभ भी मिला। शुरू में कहा था कि ठीक होने में एक साल का वक्त लगेगा। एक साल बाद कहा उपचार लंबे समय तक चलेगा, लेकिन ट्रायल अवधि समाप्त होने के बाद उन्हें ट्रायल की दवा बंद कर दी। मैं पिछले एक साल से दवा के बगैर जी रहा हूं और पूर्वावस्था में लौट रहा हूं। मैं सेवानिवृत्त हूं और दवा के नाम पर 6 हजार रु हर माह खर्च होते हैं। ऐसा नियम बनाए कि जब तक मरीज ठीक न हो जाए ट्रायल के दौरान दी जाने वाली दवाएं उपलब्ध कराई जाना चाहिए।
यह ड्रग ट्रायल से पीडि़त एमकेएस गौतम ने का कहना है। शनिवार को वे ड्रग ट्रायल पर कानून बनाने के संबंध में गठित कमेटी द्वारा एमजीएम मेडिकल कॉलेज सभागृह में जारी जनसुनवाई में मौजूद थे। चिकित्सा शिक्षा प्रमुख सचिव आईएस दाणी, डीएमई डॉ. वीके सैनी, पूर्व डीएमई डॉ. एनआर भंडारी, पूर्व कुलपति डॉ. भरत छपरवाल, ड्रग कंट्रोलर राकेश श्रीवास्तव, संभागीय संयुक्त संचालक स्वास्थ्य डॉ. शरद पंडित, एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत समेत प्रदेश के पांचों मेडिकल कॉलेज के डीन ने उनकी बात सुनी।
बंद कमरे में जनसुनवाई देख भड़के लोग
निर्धारित समय से तीन घंटे देरी से बंद कमरे में शुरू हुई जनसुनवाई को देख ्रसुझाव देने पहुंचे लोग भड़क गए। सामाजिक कार्यकर्ता क ल्पना मेहता, चिन्मय मिश्र, राकेश चांदौरे, किशोर कोडवानी, गौतम कोठारी, राजेंद्र के. गुप्ता, रामगोपाल शर्मा आदि ने नारेबाजी की। बाद में सरदारपुर विधायक प्रताप ग्रेवाल ने धरने पर बैठने की धमकी दी तो कमेटी बाहर आ गई। जनसुनवाई दोपहर एक बजे शुरू हुई और चार बजे तक चली। १६८ सुझावकर्ताओं में से ३८ ने मौखिक बात भी रखी, शेष ने लिखित आवेदन दिए।
आठ संगठनों की एक बात
मानसी स्वास्थ्य संस्थान, मप्र महिला मंच, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन, झुग्गी बस्ती संघर्ष मोर्चा, दीनबंधु सामाजिक संस्था, शिल्पी केंद्र, इंदौर समर्थक समूह और संदर्भ दस्तावेजीकरण केंद्र की ओर से कल्पना मेहता ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा निजी और सरकारी दोनों क्षेत्रों में ट्रायल की निगरानी का सख्त और सक्षम तंत्र विकसित किया जाए। ट्रायल के पांच वर्ष बाद तक रोगी को उपचार सेवा दी जाए।
बाहर के विधायक पहुंचे, इंदौर के नदारद
जन मुद्दों के प्रति इंदौर के नेताओं की संवेदनशीलता की एक बार फिर पोल खुल गई। ड्रग ट्रायल पर जनसुनवाई में सरदारपुर विधायक प्रताप ग्रेवाल और रतलाम विधायक पारस सकलेचा पहुंचे लेकिन इंदौर की सांसद और विधायकों में से कोई नहीं पहुंचा। किसी दल का प्रतिनिधित्व भी नहीं आया।
ट्रायल के पहले मरीज और उसके रिश्तेदारों को शिक्षित किया जाए।
- मनोरमा मेनन, सामाजिक कार्यकर्ता
ट्रायल की आड़ में हो रही गड़बड़ी को जांचा जाना चाहिए।
- डॉ. अरविंद दुबे, होम्योपैथिक चिकित्सक
आयुर्वेद, होम्योपैथ और अन्य चिकित्सा पद्धतियों को ट्रायल में शामिल किया।
- डॉ. आशीष पटेल, सहायक प्राध्यापक, मेडिसिन
निजी संस्थानों में को मिलने वाली राशि टैक्स के दायरे में आए। जो राजस्व मिले उससे ग्रामीण इलाकों की सेवाओं में सुधार किया जाए।
- डॉ. आनंद राजे, अध्यक्ष, स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति
ड्रग ट्रायल को लेकर पहले से ही सख्त नियम बने हुए हैं। इन नियमों का पालन तटस्थता के साथ किया जाना सुनिश्चित हों। ट्रायल से भविष्य में होने वाले उपचार में मदद होती है।
- डॉ. अनिल बंडी, अध्यक्ष, आईएमए इंदौर
नियम ऐसे बनें कि कोई भी अस्पताल आसानी से ट्रायल कर सके। ट्रायल प्रोटोकॉल के अनुसार होना चाहिए। रा'यस्तरीय कमेटी बने जो पूरी देखभाल करे।
- डॉ. सविता इनामदार, वरिष्ठ चिकित्सक
गैर जिम्मेदार डॉक्टर आर्थिक हितों के चलते गलत कदम उठा रहे हैं उनकी निगरानी हो।
- डॉ. उ''वल सरदेसाई, मनोचिकित्सक, एमवायएच
एथिकल कमेटी के अधिकारों को बढ़ाया जाए। यह एक जिम्मेदार कमेटी होती है, जिस पर मरीजों और दवा कंपनियों की जानकारी को गोपनीय रखने की जिम्मेदारी होती है।
- डॉ. केडी भार्गव, चेअरमैन, एथिकल कमेटी, एमजीएम कॉलेज
ड्रग ट्रायल को लेकर नियम-कायदे अभी केंद्र सरकार और राष्ट्रीय एजेंसियों के हाथ में हैं, इसमें रा'य सरकार की भूमिका भी स्पष्ट हो। ट्रायल में शामिल मरीज को कम से कम 5 वर्ष तक निगरानी में रखा जाना चाहिए। नवजात और ब"ाों पर होने वाले ट्रायल को प्रतिबंधित हों।
- डॉ. गौतम कोठारी, अध्यक्ष, पीथमपुर औद्योगिक संगठन
निजी संस्थानों में होने वाले ट्रायल को प्रतिबंधित कर देना चाहिए। वे केवल आर्थिक हितों को साधने के लिए लोगों की जान से खिलवाड़ करते हैं। ट्रायल से गुजर रहे व्यक्ति को यदि लाभ मिलता है तो उसके पूर्णत: स्वस्थ होने तक वही दवा उपलब्ध होना चाहिए।
- किशोर कोडवानी, सामाजिक कार्यकर्ता
नियम बनाते समय प्रशासकीय नियमों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। प्रदेश में बनने जा रहे नियमों को अन्य रा'यों की तरह ही बनाया जाए। ट्रायल कर रहे डॉक्टरों के आर्थिक हितों का ध्यान रखा जाए।
डॉ. अपूर्व पुराणिक, न्यूरोफिजिशियन, एमवायएच
रेगुलेटरी बोर्ड का गठन किया जाए। दवा कंपनी-मरीज और डॉक्टर के बीच अनुबंध हो। आदिवासी अंचलों से आने वाले मरीजों को एमवायएच के डॉक्टर डब्ल्यूएचओ के नाम पर मिलने वाली मदद के बहाने आश्वस्त करते हैं। खुलकर ट्रायल के जानकारी नहीं देते। अस्पतालों में जानकारी सार्वजनिक की जाए कि कौन-कौन डॉक्टर ट्रायल कर रहे हैं, ट्रायल से होने वाले प्रभाव और दुष्प्रभाव की जानकारी दी जाए। ट्रायल कर रहे डॉक्टर के बाहरी कमरे में काउंसलर की भी व्यवस्था की जाए, जो मरीज को सही-सही जानकारी दे।
- प्रताप गे्रवाल, विधायक सरदारपुर।
ट्रायल के दौरान मरीज को होने वाले नुकसान के लिए डॉक्टर पर कानूनी शिकंजा कसा जाए। १० वर्ष की सजा का प्रावधान भी रखा जा सकता है। प्रदेश में केवल फेज फोर ट्रायल की अनुमति दी जाए। जिस भी मरीज का चयन किया जाए उसका शिक्षित होना अनिवार्य हो। ट्रायल के बाद मरीज को कम मूल्य पर दवा की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। विशेषज्ञ के रूप में डॉक्टर को कम से कम २० वर्ष का अनुभव हो साथ ही ट्रायल में पांच अन्य विशेषज्ञ भी शामिल किए जाएं।
- पारस सखलेचा, विधायक, रतलाम
ट्रायल के लिए मरीज चयन में पारदर्शिता रखी जाए। ट्रायल अवधि अथवा ट्रायल समाप्त होने के बाद एक निश्चित अवधि में मरीज को परेशानी हो तो उसके उपचार और इंश्योरेंस की उचित व्यवस्था की जाए। प्लेसिबो ट्रायल ऐसी बीमारी में किया जाए जिसका उपचार मौजूद नहीं हो। ट्रायल से होने वाले रिसर्च को जरनल में प्रकाशित किया जाए। शोध से सामने आने वाली जानकारियां राष्ट्र की संपत्ति हो न कि दवा कंपनियों की। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में ड्रग ट्रायल एडवाइजरी बोर्ड का गठन किया जाए। जिसके पास प्रदेश में ड्रग ट्रायल के नियमन संबंधी सभी अधिकार हों।
डॉ. आनंद राय, सदस्य, स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति
तीन फार्मा कंपनियों ने भी दर्ज की उपस्थिति -
सरकार जो पैसा दस सालों में नहीं दे सकती वो निजी कंपनियां एक साल में ही दे देती हैं। नियमों का निर्धारण सरकार करे।
नीरज शर्मा, प्रतिनिधि, फार्मा कंपनी।
प्रदेश स्तरीय समिति बनाई जाना चाहिए जो मेडिको लीगल प्रकरणों पर तो ध्यान दे ही, उद्योगों के पक्ष को भी समझे और अपने विचार दे।
संजय मेहता, प्रतिनिधि, फार्मा कंपनी।
फार्मा कंपनियों द्वारा दी जाने वाली राशि का सही संयोजन होना चाहिए। ड्रग ट्रायल पूरी तरह से कानूनन है, पूरा मामला पैसोंं की अव्यवस्था को लेकर उठता दिख रहा है।
समीर गोखले, प्रतिनिधि, फार्मा कंपनी।
इन्होंने भी दिए सुझाव
प्रभु जोशी, राजेंद्र के. गुप्ता, डॉ. विजय भाईसारे, डॉ. देव पाटौदी, डॉ. माधव हासानी, डॉ. श्रुती मूथा, डॉ. गोपाल शर्मा, डॉ. नम्रता गायकवाड़, डॉ. दीपक मूलचंदानी, डॉ. अभय ठाकुर, डॉ. जनक पलटा,डॉ. सुरेश वर्मा, नागेश व्यास, जेके व्यास, डॉ. नीरजा पौराणिक, विनय बाकलीवाल, आशुतोष महाजन।
।।।।।।।।।।।।।।।।।
एक माह में सुझाव देगी कमेटी
ड्रग ट्रायल को लेकर कानून बनाने के संबंध में कमेटी से सुझाव मांगे गए हैं और हम वही कर रहे हैं। संभवत: मप्र देश का पहला राज्य होगा, जहां इस तरह का कदम उठाया जा रहा है। कमेटी के सुझाव एक माह में सरकार को दे दिए जाएंगें। नियमों को अंतिम रूप दिए जाने तक नए ड्रग ट्रायल प्रतिबंधित रहेंगे। ड्रग ट्रायल के आरोपों से घिरे किसी भी डॉक्टर के खिलाफ फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं की है।
- आईएस दाणी, प्रमुख सचिव, चिकित्सा शिक्षा विभाग
Patrtika 31 Oct 2010